Male dominated Society
पारंपरिक नजरिया पुरुष को स्त्री के मालिक के रूप में ही देखने का रहा है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि सारे अहम फैसलों में पुरुष की ही चलती रही है। हमारे समाज में यह कड़वा यथार्थ पति-पत्नी के संबंधों में आज भी बड़े पैमाने पर देखा जाता है। यह अलग बात है कि संविधान ने दोनों को बराबर के अधिकार दे रखे हैं।
- कानून के समक्ष समानता का सिद्धांत तो देश के सारे नागरिकों पर लागू होता है। लेकिन पुरुष के स्त्री के स्वामी होने की मानसिकता अब भी बहुतायत में देखी जाती है।
- पुरुष तो मालिक होने के अहं में डूबे ही रहते हैं, बहुत-सी स्त्रियां भी पति से अपने रिश्ते को इसी रूप में देखती हैं।
लेकिन शिक्षा-दीक्षा की बदौलत स्त्री में जैसे-जैसे बराबरी के भाव का और अपने हकों को लेकर जागरूकता का प्रसार हो रहा है, वैसे-वैसे पुरुष वर्चस्ववाद को चुनौती मिलने का सिलसिला भी तेज हो रहा है। पति-पत्नी के संबंधों में केवल पति की मर्जी मायने नहीं रखती। इस नजरिए की पुष्टि सर्वोच्च अदालत के एक ताजा फैसले से भी हुई है। एक महिला की तरफ से अपने पति पर क्रूरता का आरोप लगाए हुए दायर आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत ने कहा कि पत्नी ‘चल संपत्ति’ या ‘वस्तु’ नहीं है, इसलिए पति की इच्छा भले साथ रहने की हो, पर वह इसके लिए पत्नी पर दबाव नहीं बना सकता।
गौरतलब है कि इस मामले में महिला का पति चाहता था कि वह उसके साथ रहे, पर वह खुद उसके साथ नहीं रहना चाहती थी। इससे पहले अदालत ने दोनों को समझौते से मामला निपटाने के लिए मध्यस्थता की खातिर भेजा था। लेकिन सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने बताया कि उनके बीच समझौता नहीं हो पाया है। ऐसे में महिला को पति के साथ रहने के लिए अदालत कैसे कह सकती है? अदालत की टिप्पणी का निष्कर्ष साफ है, दांपत्य और साहचर्य दोनों तरफ की मर्जी पर आधारित है। जिस तरह केवल पति की मर्जी निर्णायक नहीं हो सकती, उसी तरह केवल पत्नी की मर्जी भी नहीं हो सकती। गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने अपने एक अन्य फैसले में कहा था कि वह पति को (जो कि पेशे से पायलट था) अपनी पत्नी को साथ रखने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। अलबत्ता वैसी सूरत में अदालत ने पत्नी के लिए फौरन अंतरिम गुजारा भत्ता जमा करने का आदेश दिया था। ताजा मामले की परिणति भी तलाक में होनी है, क्योंकि महिला ने पति पर जुल्म ढाने का आरोप लगाते हुए संबंध विच्छेद की गुहार लगाई है।
Download 500+ Current based Prelims Question from The Hindu, Indian Express
जहां केवल पुरुष की मर्जी चलती हो, स्त्री की मर्जी कोई मायने न रखती हो, स्त्री वहां पुरुष की चल संपत्ति या वस्तु जैसी हो जाती है, जबकि हमारा संविधान हर नागरिक को, हर स्त्री और हर पुरुष को न सिर्फ जीने का बल्कि गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है। इसी तरह हमारे संविधान का अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है। इन्हीं प्रावधानों का हवाला देते हुए मुंबई उच्च न्यायालय ने शनि शिंगणापुर और हाजी अली की दरगाह में महिलाओं के प्रवेश का रास्ता साफ किया था। और इन्हीं प्रावधानों की बिना पर सर्वोच्च अदालत ने पिछले साल तलाक-ए-बिद्दत को खारिज किया था, और पिछले महीने उसने बहुविवाह तथा निकाह हलाला की संवैधानिकता पर भी सुनवाई करने का अनुरोध स्वीकार कर लिया। उम्मीद की जानी चाहिए कि ये अदालती फैसले समता के संवैधानिक प्रावधानों को जीवंत बनाने तथा उनके अनुरूप समाज की मानसिकता गढ़ने में मददगार साबित होंगे।
#Jansatta