भूमि को उपजाऊ बनाने की चुनौती

प्रसंग:

  • कृषि विज्ञानियों तथा इंजीनियरों द्वारा विकसित उपसतही जलनिकासी तकनीक लवणता से ग्रस्त भूमि अथवा खारी मिट्टी वाली अनुपजाऊ भूमि को दो-तीन वर्ष में ही उपजाऊ बना देती है। बीते दशकों में नीदरलैंड की मदद से हरियाणा और कनाडा की मदद से राजस्थान में इस तकनीक का प्रयोग कर दोनों राज्यों में 20 से 40 हजार हेक्टेयर लवणता ग्रस्त एवं जलभराव से प्रभावित भूमि को कृषि योग्य बनाया गया।

समस्या:

  • इन दिनों बाढ़ और बारिश से देश का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न है। इसमें एक अंश खेती योग्य जमीन का भी है। अभी तो पानी की अधिकता है, लेकिन जब फसलों की सिंचाई का वक्त आता है तो पानी की कमी देखी जाती है और किसान नहरों में पानी आने का इंतजार करते हैं या फिर भूजल का दोहन करते हैं।
  • भारत में बड़े पैमाने पर नहरों से सिंचाई पिछले सात-आठ दशकों से हो रही है। नहर-नालियों से होकर पानी जब खेतों में पहुंचता है तो अपने साथ कई तरह के लवण और विशेष रूप से सोडियम क्लोराइड यानी नमक भी कृषि भूमि पर ला छोड़ता है। भूजल में भी सोडियम क्लोराइड होता है। कहीं-कहीं तो कुछ ज्यादा ही, जो भूमि की उपजाऊ शक्ति घटाता है। नहरों के पानी या भूजल से आने वाले लवण मिट्टी की ऊपरी सतह में ही रह जाते हैं। इनकी मात्रा बढ़ती जाती है, क्योंकि उसे निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है।
  • जिन खेतों पर दशकों से सिंचाई हो रही हो, वहां लवणता की समस्या विकराल रूप लेती जाती है और भूमि की उत्पादन क्षमता घटने के साथ वह ऊसर बन जाती है। इस तरह के उदाहरण विभिन्न राज्यों की कृषि भूमि पर प्रायः देखे जाते हैं।
  • चूंकि तटीय क्षेत्रों पर समुद्री तूफान, चक्रवात आदि का प्रकोप प्रायः होता रहता है इसलिए वहां समुद्री पानी, जो अत्यंत खारा होता है, भूमि की उत्पादन क्षमता एक-दो दिन में ही समाप्त कर देता है।

निदान:

  • इसके लिए एकमात्र निदान उपसतही जलनिकासी प्रणाली यानी सब-सर्फेस ड्रेनेज सिस्टम है। यह एक तरह की तकनीक है, जिसमें कई तरह की नालियां होती हैं। इन नालियों के माध्यम से भूमि से लवण को बाहर किया जाता है। चार दशक पहले इस तकनीक के नेटवर्क को सिर्फ मजदूरों की मदद से स्थापित किया जाता था। आज उन्हें पूर्णतः मशीनों की मदद से तेज गति से स्थापित किया जाने लगा है। इस लवणीय भूजल का प्रयोग झींगा संवर्धन के उपयोग में लाया जा सकता है।
  • कृषि विज्ञानियों के शोध में यह ज्ञात हुआ कि जिन लवणता ग्रस्त खेतों पर उत्पादकता 500 किग्रा प्रति हेक्टेयर होती थी, वहां पर उपसतही जलनिकासी तकनीक से कृषि उत्पादकता 2000-2500 किग्रा प्रति हेक्टेयर हो गई। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि भारत में लवणता और जल भराव से प्रभावित क्षेत्रफल करीब 80-90 लाख हेक्टेयर है और आने वाले समय में यदि सही कदम नहीं उठाए गए तो यह क्षेत्रफल और अधिक बढ़ सकता है। यदि कृषि योग्य भूमि सुधार हेतु इस तकनीक का उपयोग समय से न किया जा सका तो समस्या विकराल रूप ले सकती है। इससे खाद्यान्न उत्पादन घट सकता है।
  • भारत विश्व के 2.4 प्रतिशत भौगोलिक भूभाग एवं चार प्रतिशत जल संसाधन की मदद से अपनी अन्न संबंधी आवश्यकताएं पूरी कर रहा है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण भारत अब चीन से आगे निकलकर प्रथम स्थान पर आ गया है। बढ़ती जनसंख्या और घटती हुई उपजाऊ भूमि कृषक समुदाय की वर्तमान पीढ़ी एवं भावी पीढ़ी को भी चिंतित किए हुए है।
  • कृषि व्यवसाय से जुड़े सभी लोगों में असुरक्षा की भावना न रहे, इसके लिए सब-सर्फेस ड्रेनेज सिस्टम अपनाना आवश्यक है। इस मामले में वर्तमान सरकार द्वारा सृजित सहकारिता मंत्रालय की भूमिका बहुत प्रासंगिक और उपयुक्त होगी। मृदा लवणता से प्रभावित राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब आदि में उपसतही जलनिकासी तकनीक के प्रयोग से लाखों हेक्टेयर अनुपजाऊ भूमि की मिट्टी के स्वास्थ्य को सतत उपजाऊ बनाए रखा जा सकता है।
  • वर्तमान सरकार कृषक समुदाय को आत्मनिर्भर करने के लिए प्रयत्नशील है। इसमें सफलता के लिए कृषि योग्य भूमि को उपजाऊ बनाए रखना आवश्यक है। भूमि की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए सिंचाई एवं जलनिकासी तंत्र की अवसंरचना को 2015 से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ने बहुत सशक्त किया है, पर भूमि से लवण निकालने का अभ्यास बिल्कुल नहीं किया जा रहा है।
  • स्पष्ट है कि भूमि सुधार को प्राथमिकता देना नितांत आवश्यक है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की सफलता को पूर्णता तब प्राप्त होगी, जब यह भी पता किया जाए कि किन-किन क्षेत्रों में मिट्टी की लवणता की समस्या गंभीर है। जहां कृषि उत्पादकता नगण्य हो गई हो, वहां कृषि भूमि को उपजाऊ बनाए रखने में एकमात्र उपाय उपसतही जलनिकासी तकनीक ही रह जाती है। इस तकनीक का इस्तेमाल नीदरलैंड, अमेरिका, कनाडा और पश्चिमी यूरोपीय देशों में किया जा रहा है।
  • सहकारी व्यवस्था के तहत केंद्र एवं राज्य सरकारों के प्रयासों से भूमि को उपजाऊ बनाने का काम आरंभ करना बहुत सुगम होगा। कृषि भूमि को उपजाऊ बनाने की इस परियोजना में औसतन 1.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की लागत आ सकती है। यह हमेशा लाभकारी सौदा ही होगा, क्योंकि भूमि अधिग्रहण में एक हेक्टेयर भूमि का मुआवजा लगभग ढाई से तीन करोड़ रुपये देना पड़ता है। भूमि सुधार के इस कार्यक्रम के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त किया जा सकता है। इससे उपजाऊ कृषि भूमि की उपलब्धता बढ़ जाएगी और भूमि अधिग्रहण कानून बनाने में भी आसानी हो जाएगी।

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