बाल विवाह के विरुद्ध अभियान

प्रसंग:

  • किशोरावस्था में मां बनना लड़कियों के लिए जानलेवा सिद्ध होता है। ऐसे में, बाल विवाह रोकना और इसके प्रति लोगों में जागरूकता समय की मांग है।
  • एक ओर जहां देश आज भी बाल विवाह से जूझ रहा है, वहीं सहमति से यौन संबंध बनाने की आयु कम करने की मांग चल रही है, बिना इस वास्तविकता को जाने कि यदि ऐसा होता है, तो इसके परिणाम कितने घातक होंगे?

तथ्य:

  • विधि आयोग ने यौन संबंध बनाने हेतु सहमति की आयु कम करने के लिए हाल में ही केंद्र सरकार को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में 27 फीसदी लड़कियों का विवाह उनकी किशोरावस्था में ही हो रहा है।
  • बाल विवाह की जद में रही 6.8 फीसदी लड़कियां 15 से 19 वर्ष की आयु में मां बन जाती हैं।
  • दुनिया भर में होने वाले हर तीसरे बाल विवाह में से एक भारत में हो रहा है।

ख़तरे:

  • अपरिपक्व अवस्था में भावनाओं का आवेग और यौन संबंध स्थापित करना गर्भावस्था के खतरे को बढ़ा देगी।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन की जून, 2023 की रिपोर्ट बताती है कि किशोर माताओं (आयु 10-19) में 20-24 वर्ष की आयु में मां बनने वाली महिलाओं की तुलना में एक्लेम्पसिया (प्रसवाक्षेप) की आशंका अधिक होती है। यह वह स्थिति है, जब गर्भवती महिला को उच्च रक्तचाप होने के कारण दौरे पड़ने लगते हैं। वैश्विक स्तर पर करीब 14 फीसदी गर्भवती महिलाओं की मृत्यु प्रसवाक्षेप के कारण होती है। वहीं किशोर माताओं को प्रसवोत्तर संक्रमण का जोखिम भी अधिक होता है। किशोरावस्था में मां बनाना सिर्फ लड़कियों की जान जोखिम में नहीं डालता, उनके बच्चों के जीवन को भी खतरा होता है।
  • लैंसेट में प्रकाशितमैटरनल मोर्टालिटी इन एडोलसेंट कंपेयर्ड विद वूमेन ऑफ अदर एजेस : एविडेंस फ्रॉम 144 कंट्रीजशोध बताता है कि किशोर माताओं को उच्च स्वास्थ्य जोखिम का सामना तो करना ही पड़ता है, उतना ही जोखिम उनके नवजात बच्चे को भी होता है। यह स्पष्ट है कि किशोरावस्था में विवाह मातृत्व की संभावना को कई गुना बढ़ा देता है, क्योंकि बाल विवाह में बंधी लड़कियां सामाजिक, आर्थिक तथा पारिवारिक स्तर पर इतनी सबल नहीं होतीं कि वे गर्भावस्था के संबंध में कोई निर्णय ले सकें।
  • यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंडका अध्ययन बताता है कि विकासशील देशों में हर साल 70 हजार किशोरियां गर्भावस्था के समय उपजी जटिलताओं तथा प्रसवोत्तर जोखिम के कारण अपनी जान गंवा देती हैं।

प्रभाव:

  • बाल विवाह का आघात सिर्फ शरीर पर नहीं होता, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य को भी पूरी तरह प्रभावित करता है। किशोर माताओं को भारी मात्रा में तनाव का सामना करना पड़ता है, जो कई बार अवसाद का रूप ले लेता है। बाल विवाह शारीरिक, मानसिक और आर्थिक सभी स्तरों पर किशोर लड़कियों को कमजोर कर रहा है और वे जीवन के उन अधिकारों से वंचित रह जा रही हैं, जो कि उनका मौलिक अधिकार है। विकास की द्रुत गति में साथ खड़े होने की क्षमताएं प्रदान करने वालीशिक्षासे भी वे वंचित हो रही हैं।
  • सोशल ऐंड एजुकेशनल कंसीक्वेंस ऑफ एडोलेसेंट चाइल्ड बेयरिंग, 2022 की विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि किशोर माताएं अपने बच्चों की देखभाल तथा पारिवारिक दायित्व के चलते स्कूल तक नहीं जा पा रही हैं, जो कि उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी बाधा बनकर उभर रही है। विभिन्न शोध बताते हैं कि अशिक्षितों के निर्धनता के चक्र में फंसे रहने की अधिक आशंका होती है।

निष्कर्ष:

  • बाल विवाह आधुनिकता का दावा करने वाले समाज को कठघरे में खड़ा कर रहा है। उन कारणों को जानना और समझना बेहद जरूरी है, जो बाल विवाह का अस्तित्व बनाए हुए हैं। एक बात तय है कि अभिभावक कभी भी अपनी बच्चियों को जान-बूझकर मौत के मुंह में नहीं धकेलेंगे।
  • आमतौर पर निर्धन तथा अशिक्षित माता-पिता इस तथ्य से अनभिज्ञ होते हैं कि किशोरावस्था में मां बनना उनकी बच्चियों के लिए जानलेवा सिद्ध होता है। आवश्यकता जनजागरण की है। समय की मांग है कि सुदूर इलाकों तथा ग्रामीण अंचलों में बाल विवाह को बच्चियों के लिएसुरक्षित जीवनका विकल्प मानने की सोच रखने वालों को वास्तविकता से परिचित करवाया जाए। अगर ऐसा होता है, तो यकीनन बाल विवाह समाज से विलुप्त होगा और किशोरियों का जीवन सुरक्षित हो सकेगा।

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