कार्बन-व्यापार

प्रसंग:

  • इस वर्ष के अंत में दुबई में होने वाले अगले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप 28) में कार्बन बाजार के विनियमन के मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। दुनिया भर के नेताओं को स्वैच्छिक कार्बन बाजार की गलतियों से सीखने की जरूरत है ताकि वैश्विक परिवर्तन के लिए बनाया गया यह नया बाजार तंत्र, उन्हें दोहराए।

मुद्दा:

  • मौजूदा कार्बन बाजार दुनिया में उत्सर्जन बढ़ा सकते हैं। क्रेडिट के खरीदार (उदाहरण के तौर पर कोई एयरलाइन जिसने अपने ग्राहकों को अपने कार्बन फुटप्रिंट की भरपाई करने का आश्वासन दिया है या एक खाद्य कंपनी जिसने खुद को नेट-जीरो घोषित किया है) अपना उत्सर्जन जारी रखते हैं या कई मामलों में उन्होंने यह कहते हुए अपना उत्सर्जन बढ़ा दिया है कि उन्होंने क्रेडिट खरीदा है। लेकिन चूंकि ये क्रेडिट या तो अपने असली मूल्य से कहीं अधिक चिह्नित किए हुए हैं या वे अस्तित्व ही नहीं रखते इसलिए ये कटौती काल्पनिक ही है। यह एक ऐसा दोहरा खतरा है जिसकी जलवायु संकटग्रस्त दुनिया को कोई आवश्यकता नहीं है।
  • मौजूदा स्वैच्छिक कार्बन बाजार सस्ते विकल्पों पर आधारित है। इसका मतलब यह है कि देशों ने उत्सर्जन में कटौती के सबसे सस्ते विकल्प (जो वे वहन कर सकते थे) कोबेचदिया है। वे अब विदेशी संस्थाओं और सरकारों की बैलेंस शीट में होंगे। इसका मतलब केवल यह है कि देश कठिन विकल्पों में निवेश करने में सक्षम नहीं होंगे। यह उत्सर्जन में योगदान देगा और हमारे साझा भविष्य को खतरे में डाल देगा।

किये जाने योग्य उपाय:

  • बाजार में पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
  • बाजार के उद्देश्यों को तय करना, स्वैच्छिक, द्विपक्षीय या बहुपक्षीय और तदनुसार नियम डिजाइन करना। यदि बाजार का उद्देश्य उन परियोजनाओं में निवेश करना है जिससे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में उत्सर्जन में कमी आएगी, तो बाजार को परियोजनाओं की वास्तविक लागत के भुगतान पर आधारित होना चाहिए। वर्तमान में, बाजार नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना या बायोगैस परियोजना की लागत से कम भुगतान करता है। गरीब वस्तुतः इस बाजार में अमीर उत्सर्जकों को सब्सिडी दे रहे हैं।
  • कार्बन बाजार को अपनी सालाना आय को सत्यापन योग्य तरीके से समुदायों के साथ साझा करना आवश्यक होना चाहिए। बाजार केवल परियोजना डेवलपर्स, सलाहकारों और लेखा परीक्षकों के हित में काम करता प्रतीत होता है। समुदायों को इस आमदनी से वस्तुतः कुछ भी नहीं मिलता है और इसका मतलब है कि उत्सर्जन कटौती कार्यक्रम में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं होती।
  • परियोजना के डिजाइन को सरल रखना और परियोजनाओं का नियंत्रण सार्वजनिक संस्थानों और लोगों के हाथों में देना।
  • गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से भारत की 50 प्रतिशत विद्युत ऊर्जा आवश्यकताओं के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जलविद्युत सहित नवीकरणीय ऊर्जा के प्रत्येक मेगावाट को गिनने और इसमें शामिल करने किया जाना।

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