बुग्यालों का संरक्षण: पर्यटन और पर्यावरण के बीच तालमेल

प्रसंग:

  • उत्तराखंड में 11 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में 17 अगस्त 2023 को दयारा बु्ग्याल में बटर फेस्टिवल मनाया गया। यह पशुपालकों का त्यौहार है, जिसे परंपरागत रूप से घी सक्रांति पर मनाया जाता है। बीते कुछ सालों में इसने बटर फेस्टिवल का रूप ले लिया है, क्योंकि इस त्यौहार में दही, मट्ठा, मक्खन एक दूसरे पर लगाया जाता है।

क्या है यह?

  • हर साल गर्मियों में पशुपालक अपने पशुओं को लेकर ऊपर बुग्यालों में चले जाते हैं और सर्दियां शुरू होने से पहले लौटते हैं। इस मौके पर पशुओं की सेहत और भरपूर उत्पादन के लिए देवताओं का धन्यवाद किया जाता है। यही अंढूड़ी उत्सव होता है।
  • पिछले कुछ सालों से अच्छी मीडिया कवरेज मिलने के बाद इस फेस्टिवल में शामिल होने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही थी, लेकिन 2018 के नैनीताल हाईकोर्ट के एक फैसले ने इसके और बड़ा होने की संभावना पर रोक लगा दी।

न्यायालय का निर्णय:

  • दयारा पर्यटन उत्सव समिति ने इस साल नैनीताल हाईकोर्ट के बुग्यालों में पर्यटकों की अधिकतम संख्या 200 तक रखने के फैसले को चुनौती दी थी, लेकिन 16 अगस्त को इस याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने न सिर्फ अपने पूर्व के फैसले को बरकरार रखा, बल्कि 200 लोगों की संख्या को और सख्ती से लागू करते हुए इसमें स्थानीय लोगों को भी शामिल कर लिया।
  • हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बुग्यालों की पारिस्थितिकी बेहद नाजुक होती है और इसे संरक्षित किए जाने की जरूरत है।
  • औली-बेदिनी-बागजी बुग्याल संरक्षण समिति बनाम उत्तराखंड राज्य और अन्य केस में 21 अगस्त, 2018 को आए फ़ैसले ने उत्तराखंड में बुग्यालों के सरंक्षण के लिए पर्यटन के नाम पर की जाने वाली मनमानी को हदों में बांध दिया था।

बुग्याल क्या हैं?

  • इस फैसले में दी गई बुग्याल की परिभाषा है, "बुग्याल, जो उत्तरांचल में स्थानीय शब्द 'बग या बुगी' से लिया गया है। वृक्षरेखा और हिमरेखा के बीच स्थित हरी-भरी जड़ी-बूटियों को संदर्भित करता है। ये अत्यधिक पारिस्थितिक, सांस्कृतिक, सौंदर्य और आर्थिक महत्व के हैं, विशेष रूप से पौष्टिक चारे और उच्च मूल्य वाले औषधीय और सुगंधित पौधों (एमएपी) के लिए।" भौगोलिक रूप से ये उच्च-हिमालयी अल्पाइन वाले घास के मैदानों को भी संदर्भित करते हैं।
  • खंडपीठ ने अपने फैसले में बु्ग्यालों के संरक्षण के लिए कई आदेश जारी किए थे, जिनमें इसके अलावा खंडपीठ ने बुग्यालों में रात को रुकने पर भी प्रतिबंध लगाया था और किसी भी तरह के स्थाई निर्माण पर भी।
  • अदालत ने राज्य सरकार को अल्पाइन घास के मैदानों/उप-अल्पाइन घास के मैदानों/बुग्यालों में जाने वाले पर्यटकों की संख्या को प्रतिबंधित करने का निर्देश दिया था। फैसले के बाद यह संख्या 200 से अधिक नहीं हो सकती थी।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

  • पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर विशाल सिंह कहते हैं कि बुग्यालों में जैव विविधता बहुत विशिष्ट होती है और अगर इसमें जरा सा भी परिवर्तन होता है तो यहां मौजूद वनस्पतियों और जीवों के विलुप्त होने तक का ख़तरा है। इनमें पर्यटन को लेकर बहुत सख़्त निगरानी होनी चाहिए।
  • बुग्यालों जैसे संवेदनशील पारिस्थितिकीय तंत्र वाले प्राकृतिक स्थानों के संरक्षण पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है। किसी चीज के संरक्षण में किया जाने वाला निवेश उसे पुनर्जीवित किए जाने वाले निवेश से हमेशा बहुत कम होता है, पारिस्थितिकीय दृष्टि से भी और आर्थिक गणित से भी।
  • अगर आप ऐसी जगह का पारिस्थितिकीय महत्व खो देंगे, उसका पारिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा जाएगा तो उसका व्यवसायिक मूल्य भी कुछ नहीं रह जाएगा।

पर्यटन के मुद्दे?

  • उत्तराखंड की विशेषता यही है कि यहां बुग्याल हैं, जंगल हैं, नदियां हैं। हाईकोर्ट का फैसला सही है, लेकिन ज्यादा जरूरत इस बात की है कि लोग खुद ही इनके संरक्षण के लिए जागरुक हों।
  • बीज बम आंदोलन के प्रणेता द्वारिका प्रसाद सेमवाल कहते हैं कि पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में वह हाईकोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हैं लेकिन एक स्थानीय ग्रामीण होने के नाते उन्हें यह भी चिंता है कि इसका पर्यटन पर क्या असर पड़ेगा।
  • स्थानीय लोगों ने जो होम स्टे, रिजॉर्ट बना रखे हैं वह कैसे चलेंगे अगर पर्यटक आएंगे ही नहीं?
  • पर्यटन से जो पैसा आ भी रहा है, उसका वितरण भी एक समस्या है।

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