इलेक्ट्रॉनिक कचरा

प्रसंग:

  • दुनिया भर में 1,600 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन इस्तेमाल किए जा रहा हैं, जिनमें से करीब एक तिहाई यानी 530 करोड़ को इस साल कचरे में फेंक दिया जाएगा।
  • बेकार फेंके गए इन सभी मोबाइल फोनों को यदि एक के ऊपर एक रख दिया जाए तो इनकी कुल ऊंचाई करीब 50 हजार किलोमीटर होगी जोकि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से करीब 120 गुना ऊंची होगी। वहीं यदि इसकी तुलना चन्द्रमा की दूरी से करें तो वो इसका करीब आठवां हिस्सा तय कर लेगी।
  • यह जानकारी अंतर्राष्ट्रीय अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण फोरम (डब्लूईईई) द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है। डब्लूईईई की यह रिपोर्ट अंतराष्ट्रीय व्यापार के आंकड़ों पर आधारित है जिसमें "-कचरे" के कारण बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है।
  • पता चला है कि कई लोग पुराने फोन को रिसाइकिल करने के बजाय अपने पास रख लेते हैं, जिससे यह कचरा साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि मोबाइल फोन छोटे इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में चौथे स्थान पर हैं जिन्हें अक्सर उपभोक्ताओं द्वारा जमा किया जाता है।

क्यों है बड़ी समस्या?

  • दुनिया भर में बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक कचरा अपने आप में एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। समस्या इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग से नहीं है लेकिन जिस तरह से हम इनका उपयोग और प्रबंधन कर रहे हैं वो समस्या पैदा कर रहा है। इन इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के प्रति हमारा बढ़ता मोह ही समस्याओं की वजह है।

2022 में उत्पादित छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे सेल फोन, इलेक्ट्रिक टूथब्रश, टोस्टर और कैमरे आदि का कुल वजन करीब 2.45 करोड़ टन के बराबर है, जोकि गीजा के महान पिरामिड के वजन का करीब चार गुना है। देखा जाए तो यह छोटे इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद दुनिया भर में कुल इलेक्ट्रॉनिक कचरे का करीब 8 फीसदी है।

  • डब्लूईईई के शोधकर्ताओं द्वारा जारी अनुमान के मुताबिक 2021 में करीब 5.7 करोड़ टन से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हुआ था। अनुमान है कि बेकार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के इस पहाड़ का वजन चीन की विशाल दीवार से भी ज्यादा है, जोकि धरती पर इंसान द्वारा निर्मित अब तक की सबसे भारी चीज है।
  • वहीं 2020 में जारी ग्लोबल -वेस्ट मॉनिटर रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में करीब 5.4 करोड़ मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हुआ था। देखा जाए तो 2014 के बाद से पिछले पांच वर्षों में यह इलेक्ट्रॉनिक कचरा करीब 21 फीसदी बढ़ चुका है। वहीं अनुमान है कि 2030 तक यह बढ़कर 7.4 करोड़ मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगा।
  • अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 2019 में केवल 17.4 फीसदी इलेक्ट्रॉनिक कचरे को ही एकत्र और रिसाइकल किया गया था। मतलब कि बाकी 82.6 फीसदी वेस्ट में मौजूद लोहा, तांबा, चांदी, सोना और अन्य बहुमूल्य धातुओं को ऐसे ही डंप कर दिया गया या फिर जला दिया गया था|

-वेस्ट: कचरा या संसाधन

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2019-20 में भारत में करीब 10.1 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हुआ था। वहीं 2017-18 में यह 25,325 टन और 2018-19 में 78,281 टन था। वहीं भारत ने 2018 में केवल 3 फीसदी -वेस्ट एकत्र किया था, जबकि 2019 में यह आंकड़ा केवल 10 फीसदी था। मतलब साफ है कि देश में पुनर्चक्रण करना तो दूर की बात, इस कचरे की एक बड़ी मात्रा एकत्र ही नहीं की जाती है।
  • ऐसे में इस कचरे में मौजूद वो कीमती धातुएं जिनको पुनः प्राप्त किया जा सकता है, वो बर्बाद चली जाती हैं, देखा जाए तो इससे संसाधनों की बर्बादी हो रही है। हम इन संसाधनों को दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि 2019 में इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को रिसाइकल करने से हुए नुकसान की बात करें तो वो करीब 4.3 लाख करोड़ रुपए के बराबर बैठती है, जोकि दुनिया के कई देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है|

निष्कर्ष:

  • यदि हम इस समस्या का उचित प्रबंधन नहीं करेंगें तो अगले 30 वर्षों में इस बढ़ते वैश्विक -कचरे की मात्रा दोगुना बढ़कर 10 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी। कई देशों में इलेक्ट्रॉनिक्स की खपत तेजी से बढ़ रही है। यह ज्यादा से ज्यादा गैजेट्स और इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, बढ़ते कचरे में भी इजाफा कर रहे हैं।
  • हमें इस बढ़ती समस्या के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। इससे निपटने के लिए सबसे साथ की आवश्यकता है। राष्ट्रीय प्राधिकरणों, प्रवर्तन एजेंसियां, उपकरण निर्माताओं, इनको पुनर्चक्रण करने में लगे लोगों, शोधकर्ताओं के साथ उपभोक्ताओं को भी इनके प्रबंधन और पुनर्चक्रण में अपना योगदान देने की जरूरत है।

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