उत्सर्जन मुक्त कृषि

प्रसंग:

  • दुनिया भर में करोड़ों लोगों का पेट भरने वाली कृषि जलवायु में आते बदलावों के लिए भी उत्तरदायी  है। उत्पादन बढ़ाने के लिए जितना ज्यादा खेतों पर दबाव बढ़ रहा है उनसे होने वाले उत्सर्जन में भी उसी तेजी से वृद्धि हो रही है।

तथ्य:

  • कृषि दुनिया भर में ग्रीनहाउस गैसों के होने वाले उत्सर्जन के करीब 12 फीसदी हिस्से के लिए उत्तरदायी है।
  • कृषि से जुड़ा उत्सर्जन करीब 7.1 गीगाटन के बराबर है। इसका ज्यादातर हिस्सा मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में हो रहा है। जो जलवायु परिवर्तन के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं।
  • इस उत्सर्जन का करीब 54 फीसदी हिस्सा मीथेन के रूप में, 28 फीसदी नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में और करीब 18 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में उत्सर्जित हो रहा है।
  • वैश्विक स्तर पर खाद्य प्रणालियां, दुनिया भर में होते ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के एक तिहाई से ज्यादा हिस्से के लिए उत्तरदायी  हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि किस तरह कृषि क्षेत्र बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ अपने उत्सर्जन में भी कटौती कर सकता है।

आवश्यकता:

  • जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार कृषि से सम्बंधित ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को यदि शून्य करना है तो इसके लिए नई तकनीकों के साथ-साथ निवेश की भी आवश्यकता होगी।
  • कृषि केवल जलवायु में आते बदलावों के लिए उत्तरदायी  है साथ ही वो इसके पीड़ितों में भी सबसे अग्रिम पंक्ति में है। बढ़ते तापमान की वजह से आज कृषि, सूखा, तूफान, बाढ़ और वर्षा प्रतिरूप में आते बदलावों जैसे खतरों का सामना करने को मजबूर है।
  • शोधकर्ताओं ने कृषि से होते उत्सर्जन को कम करने के लिए विभिन्न तकनीकों का विश्लेषण किया है। साथ ही उन्होंने यह समझने का भी प्रयास किया है कि यह उपकरण हमें शून्य उत्सर्जन की राह में कितना आगे तक ले जा सकते हैं।
  • कृषि से होने वाले उत्सर्जन को कम करना विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उससे होने वाला अधिकांश उत्सर्जन मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के रूप में होता है। जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में बढ़ते तापमान के लिए कहीं ज्यादा खतरनाक हैं।

क्या किया जा सकता है?

  • शोधकर्ताओं ने कृषि संबंधी गतिविधियों से होते उत्सर्जन में कटौती करने के लिए विभिन्न तरीकों की प्रभावशीलता की जांच की है। इनमें कृषि के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के साथ पर्यावरण अनुकूल बेहतर उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग और प्रबंधन करना शामिल है।
  • पशुओं से होने वाले मीथेन को कम करने के लिए चारा और प्रजनन से जुड़ी रणनीतियां बनाना भी इनके अंतर्गत आता हैं। इसके साथ-साथ धान की कृषि के लिए वैकल्पिक तकनीकों का उपयोग करना शामिल है, जो पैदा हो रहे मीथेन को कम करने में मदद कर सकता है।
  • कृषि को उत्सर्जन मुक्त करने की रणनीति कार्बन मुक्त ऊर्जा स्रोतों पर काफी हद तक निर्भर करती है। ऐसे में कृषि में अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग काफी फायदेमंद हो सकता है। साथ ही उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य केमिकल्स को तैयार करने के लिए पर्यावरण अनुकूल तरीके विकसित करने की जरूरत है।
  • सिंचाई के लिए स्मार्ट और स्थाई विधियों का उपयोग भी फायदेमंद हो सकता है। इससे केवल जल संसाधन पर बढ़ते दबाव को कम करने में मदद मिलेगी। यह ऊर्जा के उपयोग में कमी लाने के साथ-साथ धान की कृषि से होते मीथेन उत्सर्जन को कम करने में मददगार हो सकता है।
  • ये तकनीकें कृषि क्षेत्र से होते ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को 45 फीसदी तक कम करने में मदद कर सकती है। हालांकि इसके बावजूद बचे हुए 3.8 गीगाटन उत्सर्जन को शून्य करने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने की रणनीतियों पर काम करने की आवश्यकता होगी। परन्तु ये तकनीकें महंगी हैं और उन्हें वर्तमान में व्यापक रूप से लागू नहीं किया जा सका है।
  • शोधकर्ताओं ने कृषि से होते उत्सर्जन को कम करने के लिए जिन दृष्टिकोणों को विशेष रूप से आशाजनक पाया है उनमें पहला स्थाई तरीके से बायोएनर्जी का उपयोग करना है और साथ ही ऊर्जा स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन को कैप्चर करना और उन्हें लम्बे समय के लिए जमीन में स्टोर करना शामिल है। इसके साथ ही एक अन्य उपाय प्राकृतिक चट्टान के क्षरण की प्रक्रिया को तेज करना है जो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने में मदद करती है।
  • वैज्ञानिकों के मुताबिक इन तकनीकों की मदद से कृषि को एक ऐसे क्षेत्र में बदला जा सकता है जो केवल कार्बन को वातावरण से जमा करता है साथ ही उसे हटा भी सकता है। इस अध्ययन में कृषि से जुड़ी नई तकनीकों पर भी चर्चा की गई है, जो कृषि के पारम्परिक तरीकों से परे हैं। उदाहरण के लिए इनमें कृषि से जुड़े मीथेन उत्सर्जन को दूर करना और खेतों के बिना कुछ खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना शामिल है।

अन्य बिंदु:

  • सिंचाई और उर्वरकों के मामले में नई तकनीकों के उपयोग ने वैश्विक स्तर पर फसलों की पैदावार में सुधार किया है। हालांकि कृषि पैदावार को बढ़ाने पर दिया जा रहा ध्यान अक्सर उन रणनीतियों के कारण होने वाले जलवायु प्रभावों को अनदेखा करता देता है जिन पर वो निर्भर करता है।
  • जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, वैसे-वैसे बढ़ती आबादी के लिए पर्याप्त भोजन पैदा करना मुश्किल होता जाएगा। ऐसे में उन उपायों पर ध्यान देना होगा जो जलवायु शमन को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हो।
  • पर्यावरण अनुकूल कृषि तकनीकें ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ, पानी की कमी और जैव विविधता को होने वाली हानि को भी दूर करने में मदद कर सकती हैं। हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रयास तभी सफल होंगें जब किसी एक विषय की जगह प्लांट साइंस, हाइड्रोलॉजी, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र और राजनीति जैसे सभी विषयों पर ध्यान दिया जाए।

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