संदर्भ:
- अमेरिका में एक शहर है डेट्रायट, जिसे इस बात का श्रेय जाता है कि इसने अमेरिका का औद्योगिक कायापलट कर दिया। इसके मूल में यह था कि यहां ऑटोमोबाइल उद्योग तेजी से पनपा और इसने लाखों लोगों को न केवल रोजगार दिया, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार दे दी। उद्यमी हेनरी फोर्ड ने इसकी पहल की और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यहां सवारी कारों के अलावा व्यावसायिक वाहनों का भी बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा। यही कारण रहा कि इसे दुनिया भर में 'मोटर सिटी' के नाम से जाना जाने लगा।
लाभ:
- ऑटोमोबाइल उद्योग की खासियत यह है कि इसमें न केवल कंपनियों को मुनाफा अच्छा होता है, बल्कि बड़े पैमाने पर कामगारों को रोजगार मिलता है। इस उद्योग के तेजी से बढ़ने के कारण यहां और भी उद्योगों के कारखाने लगते चले गए। बाद में दुनिया की कई कार कंपनियों ने यहां अपने कारखाने खोले और इस तरह यहां पर नई-नई तकनीकी भी आती गई, जिससे कारें पहले से ज्यादा सुंदर, मजबूत और तेज रफ्तार वाली हो गईं।
भारत में स्थिति:
- भारत में यह परिवर्तन देर से आया, क्योंकि यहां लाइसेंस राज था और सिर्फ दो-तीन कंपनियों को कारें बनाने की इजाजत थी। लेकिन 80 के दशक में एक नई शुरुआत हुई और पहली विदेशी कंपनी सुजुकी को कारें बनाने की इजाजत मिली। इसके बाद एक-एक करके कार और व्यावसायिक वाहन बनाने वाली कंपनियों की कतार लग गई। उत्पादन भी बढ़ने लगा और रोजगार भी। नई सदी के आने के बाद इस ऑटोमोबाइल उद्योग में तेजी आने लगी और सभी कार कंपनियां उन्नत मॉडल की कारें लेकर बाजार में उतरने लगीं। हालत यह हुई कि जो कारें पहले सिर्फ विदेशों में लॉन्च होती थीं, वे भारत में भी आने लगीं और कारों की बिक्री में लगातार बढ़ोतरी होने लगी।
सरकार की यह नीति कि कार कंपनियां 'भारत में ही कारें बनाएं', सफल रही। इसके लिए विभिन्न राज्यों, खासकर गुजरात और तमिलनाडु, ने उन्हें सस्ती दरों पर जमीन देने से लेकर कई अन्य तरह के प्रोत्साहन दिए। उन कंपनियों को निर्यात प्रोत्साहन भी दिया गया, जिससे भारत वाहन निर्यात करने वाला देश बन गया। कारों की प्रतिस्पर्धा ने देश में कार बाजार का आकार बड़ा कर दिया, क्योंकि ग्राहकों के पास काफी विकल्प हो गए। फिर बैंकों ने कारों और दोपहिया वाहनों के लिए कर्ज देना शुरू किया, जिससे वाहन खरीदना आसान हो गया। कोरोना के कहर के बाद देश बाहर निकला और सभी उद्योगों में जान आई, लेकिन ऑटोमोबाइल उद्योग में सबसे ज्यादा तेजी देखने को मिली।
अब इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण और उसकी तकनीकी में लगातार सुधार से कार उद्योग को मानो पंख लग गए हैं। वर्ष 2022-23 में भारत में कुल 29 लाख कारें बनीं और उम्मीद है कि 2030 तक भारत में तीन करोड़ वाहनों का उत्पादन होने लगेगा। इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण में भारत ने बाजी मार ली है। टाटा मोटर्स ने इसकी शुरुआत कर दी है और अब हर ऑटोमोबाइल कंपनी इलेक्ट्रिक कारें बना रही है या तैयारी में है। टेस्ला जैसी कार कंपनी भी भारत में कारें बनाने को तैयार हो गई है। उससे भी बड़ी बात यह है कि अब भारी-भरकम ट्रक भी इस तरह से चला करेंगे। इससे देश को बड़ा फायदा यह होगा कि हमारा पेट्रोलियम आयात बिल काफी कम हो जाएगा, जो अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी बात होगी।
आंकड़े बताते हैं कि देश की जीडीपी को बढ़ावा देने में ऑटोमोबाइल उद्योग का बहुत बड़ा योगदान है। देश की कुल जीडीपी में इसका 7.1 फीसदी योगदान है और विनिर्माण जीडीपी में 49 फीसदी। इसमें वर्तमान में करीब दो करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। यदि यह गति बरकरार रही, तो 2030 तक ऑटोमोबाइल उद्योग पांच करोड़ रोजगार दे सकेगा।
भारत इस समय दुनिया का सबसे बड़ा ट्रैक्टर उत्पादक, दूसरा सबसे बड़ा बस उत्पादक तथा तीसरा सबसे बड़ा भारी ट्रक उत्पादन करने वाला देश है। आंकड़े इंगित करते हैं कि अगले कुछ वर्षों में भारत ई-कारें उत्पादित करने के मामले में तीसरे नंबर पर होगा। कारों की बिक्री बढ़ने का एक बड़ा कारण होगा इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में बढ़ोतरी और उनकी कीमतों में गिरावट। ऐसे में, देश में इलेक्ट्रिक वाहन एक नई ऑटोमोबाइल क्रांति लाएंगे, इसमें संदेह नहीं।