GS PAPER History, Geography, Society and Art & Culture Question 7

7.   Why is the South-West Monsoon called 'Purvaiya' (easterly) in Bhojpur Region? How has this directional seasonal wind system influenced the cultural ethos of the region? (Answer in 150 words) 10 marks

The South-West Monsoon is called 'Purvaiya' (easterly) in the Bhojpur Region because of the direction from which the winds enter. The Bhojpur Region is located on the eastern side of the Aravalli Range, which blocks the direct flow of monsoon winds from the southwest. As a result, the monsoon winds have to travel around the Aravalli Range, which causes them to blow from the east in the Bhojpur Region.

The directional seasonal wind system has influenced the cultural ethos of the Bhojpur Region in a number of ways.

  • Agriculture: The Purvaiya brings much-needed rainfall to the region, supporting agriculture and crop cultivation, which forms the backbone of the local economy. Staple crops in the region such as rice and wheat are dependent on the monsoon rains.
  • Festivals and rituals: The arrival of the monsoon is celebrated with various festivals and rituals, such as Chhath Puja and Durga Puja, reflecting the importance of the seasonal winds in the lives of the people. These festivals are an important part of the cultural ethos of the region.
  • Folklore and music: The Purvaiya has also inspired a rich tradition of folklore and music in the Bhojpur Region. Many songs and folk tales are dedicated to the monsoon winds, and they celebrate the beauty and importance of the rains.

Here are some specific examples of how the Purvaiya has influenced the cultural ethos of the Bhojpur Region:

  • Chhath Puja: Chhath Puja is a major festival in the Bhojpur Region, and it is celebrated to worship the Sun God and the Chhath Maiya, who is believed to be the sister of the Sun God. The festival takes place over four days, and on the third day, devotees offer their prayers to the Sun God and Chhath Maiya while standing in the waters of a river or pond. This festival is a celebration of the Purvaiya, as it is the monsoon rains that fill the rivers and ponds of the region.
  • Bhojpuri folk songs: Many Bhojpuri folk songs are dedicated to the Purvaiya. For example, the song "Purvaiya Ho" is a popular Bhojpuri song that celebrates the arrival of the monsoon winds. The song describes the beauty of the monsoon rains and the joy that they bring to the people of the region.
  • Bhojpuri folk tales: There are also many Bhojpuri folk tales that are related to the Purvaiya. For example, the folk tale "The Rain God and the Farmer" tells the story of a farmer who prayed to the Rain God for rain. The Rain God was pleased with the farmer's devotion, and he sent the Purvaiya to bring rain to the region.

Overall, the Purvaiya has played a significant role in shaping the cultural ethos of the Bhojpur Region. It is a vital part of the region's agriculture, festivals, folklore, and music.

 

7. भोजपुर क्षेत्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून को 'पुरवैया' (पूर्वी) क्यों कहा जाता है? इस दिशात्मक मौसमी पवन प्रणाली ने क्षेत्र के सांस्कृतिक लोकाचार को कैसे प्रभावित किया है? (उत्तर 150 शब्दों में) 10 अंक

जिस दिशा से हवाएँ प्रवेश करती हैं, उसके कारण भोजपुर क्षेत्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून को 'पुरवैया' (पूर्वी) कहा जाता है। भोजपुर क्षेत्र अरावली रेंज के पूर्वी किनारे पर स्थित है, जो दक्षिण पश्चिम से मानसूनी हवाओं के सीधे प्रवाह को रोकता है। परिणामस्वरूप, मानसूनी हवाओं को अरावली पर्वतमाला के चारों ओर घूमना पड़ता है, जिसके कारण वे भोजपुर क्षेत्र में पूर्व से बहने लगती हैं।

दिशात्मक मौसमी पवन प्रणाली ने भोजपुर क्षेत्र के सांस्कृतिक लोकाचार को कई तरह से प्रभावित किया है:

  • कृषि: पुरवैया क्षेत्र में बहुत आवश्यक वर्षा लाती है, जिससे कृषि और फसल की खेती में मदद मिलती है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। इस क्षेत्र में चावल और गेहूं जैसी प्रमुख फसलें मानसून की बारिश पर निर्भर हैं।
  • त्यौहार और अनुष्ठान: मानसून के आगमन को छठ पूजा और दुर्गा पूजा जैसे विभिन्न त्योहारों और अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है, जो लोगों के जीवन में मौसमी हवाओं के महत्व को दर्शाता है। ये त्योहार क्षेत्र के सांस्कृतिक लोकाचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
  • लोकगीत और संगीत: पुरवैया ने भोजपुर क्षेत्र में लोकगीत और संगीत की एक समृद्ध परंपरा को भी प्रेरित किया है। कई गीत और लोक कथाएँ मानसूनी हवाओं को समर्पित हैं, और वे बारिश की सुंदरता और महत्व का जश्न मनाते हैं।

यहां कुछ विशिष्ट उदाहरण दिए गए हैं कि कैसे पुरवैया ने भोजपुर क्षेत्र के सांस्कृतिक लोकाचार को प्रभावित किया है:

  • छठ पूजा: छठ पूजा भोजपुर क्षेत्र का एक प्रमुख त्योहार है, और यह सूर्य देव और छठ मैया की पूजा करने के लिए मनाया जाता है, जिन्हें सूर्य देव की बहन माना जाता है। यह त्योहार चार दिनों तक चलता है और तीसरे दिन, भक्त नदी या तालाब के पानी में खड़े होकर सूर्य देव और छठ मैया को प्रार्थना करते हैं। यह त्यौहार पुरवैया का उत्सव है, क्योंकि मानसून की बारिश से क्षेत्र की नदियाँ और तालाब भर जाते हैं।
  • भोजपुरी लोक गीत: कई भोजपुरी लोकगीत पुरवैया को समर्पित हैं। उदाहरण के लिए, गाना "पुरवैया हो" एक लोकप्रिय भोजपुरी गाना है जो मानसूनी हवाओं के आगमन का जश्न मनाता है। यह गीत मानसून की बारिश की सुंदरता और क्षेत्र के लोगों को मिलने वाली खुशी का वर्णन करता है।
  • भोजपुरी लोक कथाएँ: कई भोजपुरी लोक कथाएँ भी हैं जो पुरवैया से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए, लोक कथा "वर्षा देवता और किसान" एक किसान की कहानी बताती है जिसने वर्षा देवता से बारिश के लिए प्रार्थना की थी। वर्षा देवता किसान की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने क्षेत्र में बारिश लाने के लिए पुरवैया को भेजा।

कुल मिलाकर, पुरवैया ने भोजपुर क्षेत्र के सांस्कृतिक लोकाचार को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। यह क्षेत्र की कृषि, त्योहारों, लोककथाओं और संगीत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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