सूजन आंत्र रोग (आईबीडी)

प्रसंग:

  • भारत की आबादी का लगभग 70 फीसदी हिस्सा गांवों में बसता है। भारत में, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के चलते गांवों में भी आहार और जीवन शैली में बदलाव हुआ है। बदलाव के चलते, यहां सूजन आंत्र रोग (आईबीडी) में वृद्धि होने की आशंका जताई जा रही है।

आईबीडी रोग क्या है?

  • सूजन आंत्र रोग (आईबीडी) दो स्थितियों (क्रोहन रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस) के लिए एक शब्द है जो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल के रास्ते की पुरानी सूजन हो सकती है। लंबे समय तक सूजन रहने से जठरांत्र के रास्ते को नुकसान पहुंचता है।
  • हालांकि सूजन आंत्र रोग (आईबीडी) आमतौर पर घातक नहीं होता है, यह एक गंभीर बीमारी है, जो कुछ मामलों में, घातक बीमारियों का कारण बन सकती है।
  • एक समय में, सूजन आंत्र रोग (आईबीडी) परंपरागत रूप से पश्चिमी दुनिया की एक बीमारी थी। पिछले दो दशकों में एशियाई देशों में आईबीडी की घटनाओं और व्यापकता में तेजी से वृद्धि हुई है। इस बीमारी के लिए पश्चिमी जीवन शैली सहित पर्यावरणीय कारणों को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसी कारण से, आईबीडी को हमेशा शहरी वातावरण की एक बीमारी माना गया है।
  • पिछले दो दशकों में भारत सहित एशिया-प्रशांत क्षेत्र में आईबीडी की बढ़ती घटना और इसकी व्यापकता को अच्छी तरह से दर्ज किया गया है। अध्ययनकर्ताओं ने भारत के ग्रामीण और शहरियों में सूजन आंत्र रोग (आईबीडी) का पता लगाया। उन्होंने बताया कि, ग्रामीण आबादी में आईबीडी की व्यापकता पर बहुत कम आंकड़े मिले। 1990 में चार लाख से अधिक की आबादी पर किए गए अध्ययन में संक्रामक डायरिया के उच्च प्रसार के साथ आईबीडी के केवल 74 मामले सामने आए थे।
  • सभी रोगियों के साथ-साथ विशेष रूप से आयोजित ग्रामीण शिविरों में आईबीडी की जांच के लिए कार्यक्रम आयोजित किए। ये सेवाएं गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले रोगियों और जिनके पास चिकित्सा बीमा नहीं था, उनके लिए निःशुल्क उपलब्ध थीं। ग्रामीण स्तर पर जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए गए, ताकि ज्यादा से ज्यादा रोगियों का उपचार किया जा सके।
  • लैंसेट रीजनल हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन का पहला उद्देश्य यह समझना था कि, आबादी में अन्य कॉलोनिक रोगों की तुलना में लंबे समय से चली आ रहीं बीमारी या क्रॉनिक डिजीज (सीडी) और आईबीडी का सापेक्ष अनुपात क्या है।
  • अध्ययन में कहा गया है कि, 30,000 से अधिक रोगियों के कॉलोनोस्कोपिक मूल्यांकन के आधार पर ग्रामीण और शहरी भारत में आईबीडी के सापेक्ष अनुपात की तुलना करने वाला यह पहला अध्ययन है। निचले जठरांत्र (जीआई) लक्षणों वाले 5 फीसदी से अधिक मरीजों में आईबीडी शामिल है, यह दर संक्रामक डायरिया की तुलना में अधिक थी। ग्रामीण और शहरी आबादी के बीच आईबीडी मामलों का सापेक्ष अनुपात अलग नहीं पाया गया।
  • 55 फीसदी लोगों में मुख्य रूप से पेट दर्द की पुरानी बीमारी से संबंधित लक्षण थे।

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