- यह विचार सर्वप्रथम 1919 में सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तुत किया गया।
- इस विचार पर 1960 में केएल राव ने फिर से विचार किया, जिन्होंने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव दिया था।
- राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना 1982 में पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा की गई थी। 1982 में NWDA की स्थापना के बाद इसे बढ़ावा मिला।
- 2014 में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को कैबिनेट की मंजूरी मिली थी।
- कैप्टन दस्तूर प्रस्ताव (1977) की गारलैंड नहर योजना में दो नहरों के निर्माण की परिकल्पना की गई - पहली 4200 कि.मी. हिमालयी नहर पश्चिम में रावी से लेकर पूर्व में ब्रह्मपुत्र और उससे आगे तक हिमालय की ढलानों के तल पर; और दूसरी 9300 किमी की गारलैंड नहर मध्य और दक्षिणी भागों को कवर करती है, जिसमें दोनों नहरें कई झीलों के साथ एकीकृत हैं और दो स्थानिक बिंदुओं, दिल्ली और पटना में पाइपलाइनों से जुड़ी हुई हैं।
- राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP)
- इंटर-लिंकिंग परियोजना को तीन भागों में विभाजित किया गया है: उत्तरी हिमालयी नदियों को जोड़ने वाला घटक, एक दक्षिणी प्रायद्वीपीय घटक, और 2005 से शुरू हुआ, एक अंतर्राज्यीय नदियों को जोड़ने वाला घटक।
पक्ष में तर्क:
- अतिरिक्त पानी को सूखा प्रभावित क्षेत्रों में मोड़ना: भारत में वार्षिक रूप से लगभग 4,000 क्यूबिक किलोमीटर बारिश होती है, या हर साल प्रति व्यक्ति लगभग 1 मिलियन गैलन ताजा पानी मिलता है। हालाँकि, भारत में वर्षा का प्रतिरूप नाटकीय रूप से भौगोलिक दूरी और कैलेंडर महीनों में परिवर्तित होता रहता है। गंगा-ब्रह्मपुत्र बेसिन के हिमालयी जलग्रहण क्षेत्रों में मानसून के दौरान लगभग 85% वर्षा होती है। उत्तर-पश्चिमी, पश्चिमी और दक्षिणी भागों की तुलना में देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारी वर्षा होती है। मानसून की अनिश्चितता और असमान वितरण देश के लिए एक गंभीर समस्या है। देश में सूखे और बाढ़ के चक्र दिखना सामान्य बात है।
- नदी जोड़ो और नौपरिवहन: भारत को रसद और माल ढुलाई के लिए बुनियादी ढांचे की जरूरत है। नौपरिवहन/नौवहन के रूप में आपस में जुड़ी हुई नदियों का उपयोग कर परिवहन अवसंरचना द्वारा एक स्वच्छ और कम कार्बन पदचिह्न स्वरुप को प्राप्त किया जा सकता है, विशेष रूप से अयस्कों और खाद्यान्नों के लिए।
- गंगा बेसिन के पूर्वी हिस्सों में लगातार आने वाली बाढ़ के प्रभाव को कम करते हुए, नदी जोड़ने की परियोजना को पश्चिमी और दक्षिणी भारत में पानी की कमी को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- नदियों को जोड़ना आंध्र प्रदेश के दोगुने से भी अधिक क्षेत्रफल वाले क्षेत्र को सिंचित करने का दावा करता है। यह जल मंत्रालय की राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना का निरीक्षण करते हुए देश में बाढ़ और सूखे को भी दूर कर सकता है जहां एक तिहाई क्षेत्र सूखा-प्रवण है और आठवां क्षेत्र बाढ़-प्रवण है।
- यह उम्मीद करता है: राष्ट्रीय ग्रिड में 34,000 मेगावाट जलविद्युत जोड़ने की, जिसमें से 3500 मेगावाट का उपयोग विभिन्न लिफ्टों में किया जाएगा; कई मिलियन लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति, पश्चिम और दक्षिण में पानी की कमी वाले और सूखा प्रवण शहरों को औद्योगिक जल आपूर्ति; पूर्व में बाढ़ और पश्चिम और दक्षिण में सूखे को कम करने के लिए।
विपक्ष में तर्क:
- सबसे बड़ा सवालिया निशान वित्तीय व्यवहार्यता है नदियों को जोड़ने से सरकार को लगभग रु. 10 ट्रिलियन का व्यय करना होगा और 14 हिमालयी नदियों और प्रायद्वीपीय भारत में 16 नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं का अर्थ है कि 174 बीसीएम पानी को स्थानांतरित करने के लिए 15,000 किमी नई नहरों को जोड़ना होगा।
- इससे बड़े पैमाने पर लोगों का विस्थापन होगा
- पारिस्थितिक निहितार्थ
- पानी की राजनीति
- अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थ: राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना का भारत की सीमाओं से परे जबरदस्त प्रभाव होगा। नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे देश जो नदी घाटियों के नेटवर्क का हिस्सा हैं, वे नदी के पानी को स्थानांतरित करने की भारत की योजनाओं के बारे में चिंतित होंगे जो उनके पास आ सकते थे।
नदियों को आपस में जोड़ने के साथ आगे की राह:
- एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन भारत के लिए कुंजी है। भारत को पानी की हर बूंद को संरक्षित करने, बर्बादी को कम करने, संसाधनों के समान वितरण के साथ-साथ भूजल को बढ़ाने की जरूरत है। इसलिए बड़े पैमाने की परियोजनाओं के बजाय छोटे पैमाने की साधारण चीजों को आजमाना होगा।
- स्थानीय समाधान (बेहतर सिंचाई पद्धति की तरह) और वाटरशेड प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
- सरकार को वैकल्पिक रूप से राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना (NWP) पर विचार करना चाहिए जो नदी के पानी के बँटवारे को लेकर राज्यों के बीच द्वंद्व को "समाप्त" करता है; क्योंकि यह केवल अतिरिक्त बाढ़ के पानी का उपयोग करता है जो बिना उपयोग के समुद्र में चला जाता है।
- भारत नदियों को आपस में जोड़ने के बजाय ‘आभासी जल की अवधारणा’ को आजमा सकता है। उदाहरण के लिए: मान लीजिए कि जब कोई देश घरेलू स्तर पर उत्पादन करने के बजाय एक टन गेहूं का आयात करता है, तो वह लगभग 1,300 क्यूबिक मीटर स्थानीय पानी की बचत कर रहा है। स्थानीय जल को बचाया जा सकता है और अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- नदी-जोड़ने की आवश्यकता और व्यवहार्यता को मामला-दर-मामला आधार पर देखा जाना चाहिए, जिसमें संघीय मुद्दों को आसान बनाने पर पर्याप्त जोर दिया जाना चाहिए।
- हमें छोटी-छोटी चीज़ों को हासिल करने के महत्व को समझने की जरूरत है। आखिरकार, "बड़े सपने छोटे कदमों से ही साकार होते हैं"। इसलिए, सरकार को नदियों के आपस में जोड़ने का एक विस्तृत जलवैज्ञानिक, भूवैज्ञानिक, मौसम संबंधी और पर्यावरणीय विश्लेषण करना होगा। उसमें सरकार को विकल्पों का भी विश्लेषण करना चाहिए।