प्रसंग:
- अफगानिस्तान हिमालय का भी हिस्सा है और हिमालय से जुड़ा हुआ पूरा बेल्ट बहुत ही संवेदनशील भी है। कुछ ही समय पहले यहाँ भूकंप के झटकों ने दिल्ली, एनसीआर, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड को हिला दिया था।
अधिक विनाश क्यों?
- भूकंप के बारे में बहुत-सी जानकारियों का अभाव बना है, क्योंकि यह पृथ्वी के गर्भ से उत्पन्न होने वाली हलचल है, जिसको नापना व अनुमान लगाना बहुत कठिन है। हालांकि शोधकर्ता बताते हैं कि भूकंप का अनुमान लगाया जा सकता है। लेकिन, इसके बावजूद ढांचागत सुविधाओं जैसे घर आदि को बचाना मुश्किल होगा।
- भूकंप पृथ्वी के गर्भ में पनपती उन प्लेटों से जुड़ा है जो कि लावा के ऊपर तैरती हैं और ये प्लेट कब, किस कोने में, किस प्लेट से टकरा जाएं, इसका अनुमान बड़ा कठिन हो जाता है। जब भी ऐसा होता है तो एक कंपन पृथ्वी की सतह पर महसूस होता है और इसे भूकंप कहते हैं। ये टकराव पृथ्वी से कितने नीचे है, उससे कंपन की तीव्रता तय होती है। टकराव जितना नीचे होता है, उतना कम नुकसान, जितना सतही, उतना बड़ा नुकसान होता है।
भूकंप को समझना:
- भूकंप के हालात हमारे नियंत्रण में नहीं हैं। पृथ्वी के गर्भ में होती हलचलें हमारी समझ से बाहर हैं। लेकिन दो-तीन चीजें यहां बहुत महत्वपूर्ण होंगी।
- पहला- पृथ्वी का अधिकांश हिस्सा समुद्र में है और समुद्र के तल में भी कई तरह के छिद्र हैं, जिन्हें वेंट कहते हैं। यह वह जगह होती हैं, जिसे खुले छिद्र के रूप में माना जाता है और यहां से तमाम तरह की गैस निकलती हैं।
- ये कभी भी बड़ा रूप ले कर ढेर सारे लावा को समुद्र की सतह से ऊपर लाती हैं और इस कारण समुद्री इलाका छोटे-मोटे भूकंप झेलता रहता है। यही कारण है कि जापान या फिलीपींस जैसे टापू लगातार किसी न किसी रूप में भूकंप झेलते हैं। मतलब प्रदूषित समुद्र और भयानक सिद्ध हो सकता है।
- दूसरी बड़ी बात यह है कि हम भूकंप को नियंत्रण में नहीं रख सकते, पर एक चीज हमारे हाथ में है। वो ये कि हम अपनी पृथ्वी के आवरण को या पर्यावरण को इस स्तर का बना सकते हैं या रख सकते हैं ताकि इस तरह की घटनाओं में जान-माल को कम नुकसान हो। हम बहुमंजिला इमारतों की कल्पना कर जो कुछ भी विकास के नाम पर साधते हैं, वो ज्यादा भारी पड़ जाता है।
- अगर भूकंप की तीव्रता 7 से ऊपर हो तो मान कर चलिए कुछ भी बच पाना संभव नहीं होता। इसके अलावा हम जिस तरह से प्रदूषण फैला रहे हैं, हम स्वयं भी पृथ्वी के ऊपर एक असंतुलन पैदा कर रहे हैं। साथ ही ढेर सारा कचरा जब समुद्र में जाता है तो समुद्र का अपना पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित होता है। पृथ्वी ने हमेशा संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है, लेकिन हमने नियमों को दरकिनार कर दिया।
निष्कर्ष:
- सिक्किम की बाढ़ हो या लीबिया की या अपने ही देश में हुई अन्य घटनाएं, इनमें सीधे बड़ी चोट अगर पहुंचती है तो यह हमारे अनियंत्रित, अकुशल, अविवेकपूर्ण ढांचागत विकास के कारण है। इसलिए शायद एक ही सूत्र समझना और मानना भी होगा कि आने वाले समय में ढांचागत विकास के प्रति केंद्रित होकर कदम उठाएं। भूकंप, बाढ़, अन्य घटनाएं जिनसे जान-माल को सीधा नुकसान होता है, उन पर केंद्रित होकर हम आवास-निवास तय करें, तो इन घटनाओं के कारण कम से कम नुकसान झेलेंगे।