- जलवायु परिवर्तन के इस दौर में अब चरम और अनियमित मौसमी घटनाओं के बारे में कोई बहाना नहीं बनाया जा सकता है। अभूतपूर्व बारिश अब असामान्य घटना नहीं रही। लेकिन यह सिर्फ बार-बार होने वाली चरम मौसमी घटनाओं की मार नहीं है। हम जलवायु परिवर्तन को और अधिक गंभीर बनाने वाले कारकों- अनियोजित शहरीकरण, एक युवा पर्वत श्रृंखला पर, जो अब भी भौगोलिक रूप से सक्रिय है, अनियमित एवं अवैज्ञानिक बुनियादी ढांचे के विकास की अनदेखी नहीं कर सकते। इन कारकों से कोई बच नहीं सकता। इसके बावजूद हम इनमें से किसी एक की अनदेखी कर अपनी उपेक्षा का परिचय देते हैं।
- विकास बनाम पर्यावरण:
विकास बनाम पर्यावरण की बहस आज अप्रासंगिक हो गई है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के दौर में बिना सोचे-समझे किया गया विकास जीवन और आजीविका की तबाही के समान है। वही बुनियादी ढांचा परियोजनाएं इसका निशाना बन रही हैं, जिन्हें विकास का प्रतीक माना जाता है। जलवायु परिवर्तन के समय में इस मुद्दे को विनाश बनाम विकास के रूप में फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए।
उदाहरण के लिए, यदि हम किसी संवेदनशील पहाड़ी इलाके में जहां अभी टू-लेन मार्ग है, फोर-लेन राजमार्ग बनाना चाहें, तो इसका मतलब है कि वन क्षेत्र के एक बड़े हिस्से का विनाश। इससे ढलान अस्थिर हो जाएंगे, जिसे फिर से स्थिर होने में दशकों लगेंगे। इसका मतलब यह भी है कि निर्माण और भूस्खलन से निकलने वाला मलबा नदियों के बहाव को बाधित करेगा, जिससे अप्रत्याशित बाढ़ की स्थिति पैदा होगी। यह बस एक उदाहरण है कि कैसे विकास का एक खास मॉडल हमें विनाश के खतरे में डालता है।
- जल संसाधन पर गठित स्थायी समिति (2022-23)की सिफारिशें:
हिमस्खलन, बादल फटने और भूस्खलन सहित पहाड़ी खतरों/आपदाओं की घटनाओं में हालिया वृद्धि ने एक मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के सर्वोपरि महत्व को रेखांकित किया है। इन घटनाओं को एक मामले के रूप में अलग करके नहीं देखना चाहिए, बल्कि व्यापक प्रभाव वाली संभावित कई आपदाओं से जोड़कर देखना चाहिए। मौजूदा चेतावनी प्रणालियां इस तरह की आपदाओं से निपटने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि इन्हें केवल एक आपदा का पूर्वानुमान लगाने के लिए तैयार किया गया है।
समिति ने सिफारिश की कि जल संसाधन विभाग को इस संबंध में पहल करनी चाहिए और एनडीएमए, भारतीय मौसम विभाग एवं संबंधित राज्य सरकारों, जैसी अन्य सरकारी एजेंसियों से परामर्श करके बहु-आपदा जोखिम मूल्यांकन दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए, ताकि संभावित पर्वतीय खतरों के संबंध में सभी हितधारकों को नियमित निगरानी और खतरों/आपदाओं के संबंध में चेतावनियां जारी करने वाली एकल नोडल एजेंसी के तत्वावधान में वास्तविक समय समन्वित तंत्र के साथ एक बहु-आपदा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित की जा सके।
एक बड़ा मुद्दा जल सुरक्षा का भी है। इसमें हिमालयी ग्लेशियर रणनीतिक भूमिका निभाते हैं। तीन प्रमुख भारतीय नदी प्रणालियां ग्लेशियर से पोषित हैं, जो देश को पेयजल जरूरतों, पनबिजली, उद्योग, कृषि आदि जैसे विभिन्न उपयोगों के लिए जल सुरक्षा प्रदान करती हैं। ग्लेशियरों से सटी घाटियों में हरित आवरण महत्वपूर्ण है, जो बफर (प्रतिरोधी) का काम करता है और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को घटाने में मदद करता है। इन सभी कारणों से समिति को लगा कि इन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए। इसके लिए समिति ने जल संसाधन विभाग, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय एवं अन्य संबंधित मंत्रालयों के सहयोग से संवेदनशील हिमालयी ग्लेशियर प्रणाली के संरक्षण के लिए एक व्यापक नीति प्रतिक्रिया विकसित करने का आग्रह किया है।
समिति की एक अन्य प्रमुख सिफारिश हिमालयी राज्यों में भूमि उपयोग योजना बनाने/क्षेत्रों में बांटने के लिए बेहतर ढंग से तैयार प्रक्रिया/नियमों की तत्काल आवश्यकता पर केंद्रित है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में, जो अधिक नाजुक और संवेदनशील हैं। यह कहने की जरूरत नहीं कि अगर अनुपालन न हो, तो प्रक्रियाओं का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
समिति ने राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) को मजबूत बनाए जाने का आह्वान किया है, जो प्राकृतिक एवं मानव निर्मित आपदाओं का जवाब देने के लिए एक राष्ट्रीय बचाव और प्रतिक्रिया बल है। अर्थ मूवर्स, भारी ड्रिलिंग मशीन, जेसीबी, आदि जैसे भारी उपकरण एनडीआरएफ के पास नहीं हैं और ये उपकरण आम तौर पर घटना स्थल पर इन्हें संचालित करने वाले प्रशिक्षित कर्मियों के साथ स्थानीय अधिकारियों द्वारा प्रदान किए जाते हैं। इसके अलावा, एनडीआरएफ के पास आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए आधुनिक मलबा सफाई उपकरण भी नहीं हैं, जैसा कि फरवरी, 2021 में उत्तराखंड के चमोली जिले में देखने को मिला था।
समिति ने पाया कि हालांकि एनडीआरएफ एक विशेष बचाव और प्रतिक्रिया बल है, लेकिन इसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि कई राज्य सरकारों के पास विभिन्न प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं से निपटने के लिए आवश्यक विशेष कौशल और संसाधनों की कमी है। एनडीआरएफ के पास खोज एवं बचाव के लिए अपने उपकरण होने चाहिए। हमें इस बारे में जागरूक होने और उचित कार्रवाई की मांग करने की आवश्यकता है, वरना वास्तविक विकास के बजाय हमें विनाश ही मिलेगा।