प्रसंग:
Ø ओबीसी जातियों को शिक्षा और नौकरी में 27 फीसदी आरक्षण तो मिल ही चुका है। नया आंकड़ा आने पर सरकार को इस आरक्षण को भी बढ़ाना पड़ सकता है। साथ ही तमाम ओबीसी जातियां जनप्रतिनिधित्व में भी उनकी संख्या के हिसाब से आरक्षण मांगेगीं, जो अधिकांश राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाला है।
- हाल में दो घटनाएं लगभग एक साथ हुई हैं, जो भारतीय राजनीति और सामाजिक न्याय के संघर्ष का नया मोर्चा खोल सकती हैं। पहला है-पटना हाईकोर्ट द्वारा बिहार की नीतीश सरकार को राज्य में जातिगत सर्वे कराने की अनुमति देना और दूसरा देश में ओबीसी आरक्षण को लेकर गठित रोहिणी आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपना। इस रिपोर्ट में आयोग ने ओबीसी जातियों को चार श्रेणियों में विभाजित करने की सिफारिश की है।
- यानी अगर जातिगत सर्वे से जहां बिहार में पिछड़ा वर्ग जातियों की सही संख्या का पता लगेगा, वहीं रोहिणी आयोग रिपोर्ट यदि लागू होती है तो ओबीसी में श्रेणीवार आरक्षण का नए सिरे से बंटवारा होगा। यानी कोटे के भीतर कोटा वाली व्यवस्था लागू होगी।
- रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ओबीसी के तहत आने वाली सभी जातियों की संख्या और इस वर्ग को 30 वर्ष पूर्व मिले आरक्षण के बाद उनकी सामाजिक स्थिति व आरक्षण लाभ की वस्तुस्थिति का लेखा-जोखा पेश किया है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के तहत कुल 2633 जातियां सूचीबद्ध हैं। लेकिन आरक्षण लाभ की दृष्टि से यहां सामाजिक न्याय की उपेक्षा अथवा पक्षपाती लाभ ही हुआ है।
वर्तमान स्थिति:
- वर्तमान में देश में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण ( राज्यों में यह प्रतिशत अलग-अलग है) लागू है। इन दोनों घटनाओं का राजनीतिक दल अपने हित साधन की दृष्टि से अलग-अलग तरीके से फायदा उठाएंगे। लेकिन एक बात साफ है कि इन घटनाओं ने ठंडी पड़ चुकी मंडल राजनीति को नए सिरे हवा दे दी है, जिसका काउंटर अब कमंडल राजनीति से करना मुनासिब नहीं होगा।
- जाति जनगणना की बिहार से हुई शुरुआत पूरे देश में ऐसी मांग के रूप में तेज होगी। इसका असर इस साल होने वाले चार राज्यों के विधानसभा और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा, क्योंकि पिछड़ा वर्ग आरक्षण की लड़ाई का सबसे महत्वपूर्ण चरण तो राजनीतिक आरक्षण का है, जो अभी तक अनसुलझा है या यूं कहें कि उसे किसी तरह दूसरे मुद्दे उठाकर दबाकर रखा गया है।
बढ़ सकता है ओबीसी आरक्षण
- ओबीसी जातियों को शिक्षा और नौकरी में 27 फीसदी आरक्षण तो मिल ही चुका है। नया आंकड़ा आने पर सरकार को इस आरक्षण को भी बढ़ाना पड़ सकता है। साथ ही तमाम ओबीसी जातियां जनप्रतिनिधित्व में भी उनकी संख्या के हिसाब से आरक्षण मांगेगीं, जो अधिकांश राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाला है।
- वो पुराना नारा ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ फिर जोर पकड़ेगा। ध्यान रहे कि देश में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का बिल इसी कारण से अटका हुआ है कि ओबीसी पहले अपना राजनीतिक आरक्षण सुनिश्चित करना चाहते हैं, उसके बाद ही महिला आरक्षण का समर्थन करना चाहते हैं। यही कारण है कि नौ सालों से केन्द्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद भी भाजपा महिला आरक्षण बिल संसद में पारित कराने का साहस नहीं जुटा पाई है।