पहली तिमाही में विकास की राह

भारत ने दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अपना दबदबा कायम रखा है, क्योंकि वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून, 2023) में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद साल दर साल वृद्धि के साथ 7.8 फीसदी दर्ज किया गया है। इससे कैलेंडर वर्ष 2023 (जनवरी से जून) की पहली छमाही में वृद्धि दर सालाना आधार पर सात फीसदी हो गई, जो इसी अवधि के लिए चीन की विकास दर 5.4 फीसदी से काफी आगे है।

यह पिछली चार तिमाहियों में सबसे तेज वृद्धि है। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2023) में विकास दर 6.1 फीसदी रही थी। हालांकि यह पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 13.5 प्रतिशत वृद्धि दर से कम है, जो कि पिछले वर्षों में कोविड के कारण अर्थव्यवस्था में संकुचन के बाद आधार बदलने के कारण था। भारत की अर्थव्यवस्था स्थिर गति से बढ़ रही है और त्योहारी मौसम के दौरान इसमें और सुधार होने की संभावना है, जो जन्माष्टमी और फिर गणेश चतुर्थी से शुरू होता है।

सेवाओं और निर्माण गतिविधियों में निरंतर मजबूती के साथ सहायक आधार ने विकास को बढ़ावा दिया है। विनिर्माण क्षेत्र ने अनुकूल मांग एवं कम लागत की वजह से अपनी गति बनाए रखी।
इसमें इस तिमाही के दौरान कॉरपोरेट लाभ मार्जिन में सुधार भी शामिल है। यदि क्षेत्रवार जीडीपी वृद्धि को देखें, तो सेवा क्षेत्र, जो जीडीपी में 53 फीसदी का योगदान करता है, 10.3 फीसदी की दर से बढ़ा। सेवा क्षेत्र के भीतर विभिन्न उप-क्षेत्रों के विकास में व्यापक सुधार हुआ। हालांकि, वित्तीय, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवाओं में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई। विवेकाधीन मांग में मजबूती से व्यापार, होटल और परिवहन उप-क्षेत्रों का स्वस्थ गति से विस्तार हुआ। मुख्य मुद्रास्फीति में नरमी और कम इनपुट कीमतों के साथ इस क्षेत्र के लिए समग्र रूप से सकारात्मक भावना बनी हुई है। पिछले वर्षों की औसत वृद्धि के अनुरूप वित्त वर्ष 2024 में सेवा क्षेत्र में आठ फीसदी से ज्यादा वृद्धि की संभावना है।

वित्त वर्ष-24 की पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र का विस्तार धीमी गति (3.5 फीसदी की दर) से हुआ, जबकि एक तिमाही पहले यह दर 5.5 फीसदी थी। हालांकि कृषि वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के अनुमान ने उच्च रबी बुआई से कृषि उत्पादन का समर्थन किया, लेकिन तिमाही के दौरान मौसम संबंधी व्यवधानों का इस क्षेत्र के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है। आगे इस क्षेत्र की संभावनाएं काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेंगी कि मानसून कैसा रहता है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, दलहन, तिलहन और कपास जैसी खरीफ फसलों की बुआई पिछले साल की तुलना में कम है। चूंकि अगस्त के अंत तक 90 फीसदी से अधिक बुआई पूरी हो चुकी है, इसलिए हमें इन फसलों की बुआई में किसी बड़े सुधार की उम्मीद नहीं है।

इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में औद्योगिक क्षेत्र में 5.5 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि एक तिमाही पहले यह 6.3 फीसदी थी। औद्योगिक विकास को मुख्य रूप से विनिर्माण और निर्माण क्षेत्रों में निरंतर गति से समर्थन मिला। विनिर्माण क्षेत्र में फार्मा, गैर-धातु खनिज उत्पाद, रबर, प्लास्टिक, धातु जैसे उद्योगों में उच्च उत्पादन वृद्धि देखी गई।

बुनियादी ढांचे के विकास पर सरकार के जोर से निर्माण क्षेत्र का स्वस्थ गति से विकास जारी रहा। सीमेंट उत्पादन और इस्पात की खपत पहली तिमाही में अच्छी रही। वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में विनिर्माण में सालाना आधार पर 4.7 फीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन जुलाई से दिसंबर, 2023 में इसमें तेजी से वृद्धि की संभावना है। इसे कम आधार और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों से लाभ होगा।
निश्चित निवेश व्यय में तेजी से समग्र मांग बढ़ेगी, जिसमें पहली तिमाही में सालाना आधार पर आठ फीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन इसमें मजबूती की संभावना है, क्योंकि निजी निवेश सार्वजनिक निवेश के लिए पूरक का काम करेगा। अप्रैल से जुलाई, 2023 के बीच हल्की वित्तीय गिरावट देखी गई, जो आंशिक रूप से राज्यों को सौंपे गए करों में 54 फीसदी वृद्धि के कारण हुई, इसके चलते वित्त वर्ष 2024 के बाकी हिस्सों में करों में कमी आएगी।

वैश्विक स्तर पर अनिश्चित आर्थिक माहौल के बावजूद भारत की आर्थिक गतिविधि बेहतर है। शहरी विवेकाधीन मांग और सरकारी पूंजीगत व्यय में मजबूती ने अर्थव्यवस्था को कमजोर होती बाहरी मांग के प्रभाव से बचाया है। कुल मिलाकर, उच्च घरेलू मांग के कारण जीडीपी वृद्धि मजबूत बनी रही। खर्च के मामले में उपभोग और निवेश ने वास्तविक जीडीपी की वृद्धि को सहारा प्रदान किया। हालांकि, धीमी वैश्विक मांग के कारण निर्यात में कमी चिंताजनक है।

उत्पादन के मामले में, सेवा क्षेत्र लचीला रहा, लेकिन औद्योगिक गतिविधियां धीरे-धीरे बढ़ीं। हालांकि, हाल के महीनों में मुद्रास्फीति की समस्या फिर से उभरने और मौद्रिक सख्ती के प्रभाव में कमी के कारण उपभोग मांग में कुछ कमी आ सकती है। खाद्य मुद्रास्फीति में उछाल उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को प्रभावित कर सकता है, जिसका असर आगामी त्योहारी सीजन की मांग पर पड़ सकता है। इसके अलावा, मौसम संबंधी अनिश्चितताएं कृषि उत्पादन में बाधा डाल सकती हैं, जिससे आने वाली तिमाहियों में ग्रामीण मांग में सुधार और आर्थिक विकास पर असर पड़ सकता है। अब तक सरकारी पूंजीगत व्यय ने निवेश मांग का समर्थन किया है, हालांकि इसकी गति जारी रखने के लिए निजी निवेश में निरंतर वृद्धि महत्वपूर्ण होगी। इसलिए अगली तिमाहियों में विकास दर विभिन्न कारकों पर निर्भर करेगी, जैसे कि मौसम, मुद्रास्फीति नियंत्रण में सरकार की प्रभावशीलता और बाहरी मांग में सुस्ती के प्रभाव।

कुल मिलाकर, उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2024 में वास्तविक जीडीपी 6.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी। रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कैलेंडर वर्ष 2023 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि का अनुमान बढ़ाकर 6.7 फीसदी कर दिया है। इसमें कहा गया है कि मजबूत सेवाओं के विस्तार और सरकारी व निजी पूंजीगत व्यय ने पूर्वानुमान में सुधार का मार्ग प्रशस्त किया।

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