रीसाइक्लिंग से बढ़ती प्लास्टिक में विषाक्तता

प्रसंग:

  • रीसाइक्लिंग, प्लास्टिक प्रदूषण का रामबाण इलाज नहीं है। इसपर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि पुनर्चक्रण की यह प्रक्रिया वास्तव में प्लास्टिक की विषाक्तता को बढ़ाती है। यह जानकारी ग्रीनपीस द्वारा जारी नई रिपोर्ट "फॉरएवर टॉक्सिक: द साइंस ऑन हेल्थ थ्रेट्स फ्रॉम प्लास्टिक रीसाइक्लिंग" में सामने आई है।

लक्ष्य:

  • इसका लक्ष्य प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए वैश्विक स्तर सभी देशों को एकजुट करना और उनके बीच वैश्विक संधि करना है। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्लास्टिक स्वाभाविक रूप से सर्कुलर इकॉनमी के लिए असंगत हैं, यह दोनों एक साथ नहीं चल सकते हैं।
  • रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि पेरिस में प्लास्टिक संधि को लेकर चल रही वार्ता में प्लास्टिक उत्पादन को सीमित और कम करने के प्रयास करने चाहिए। देखा जाए तो जीवाश्म ईंधन, पेट्रोकेमिकल और रोजमर्रा की चीजे बनाने वाली कंपनियां जैसे नेस्ले, यूनिलीवर और कोका-कोला के साथ-साथ प्लास्टिक उद्योग, प्लास्टिक की समस्या से निपटने के लिए समाधान के रूप में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग पर जोर दे रहे हैं, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक यह सही नहीं है।
  • रिपोर्ट में जो तथ्य सामने हैं उनके मुताबिक प्लास्टिक में 13,000 से अधिक केमिकल्स होते हैं जिनमें से 3,200 इंसानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जाते हैं। इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि अक्सर रीसायकल प्लास्टिक में बहुत ज्यादा मात्रा में केमिकल होते हैं जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। साथ ही वो पारिस्थितिक तंत्र को दूषित कर सकते हैं।
  • शोधकर्ताओं ने इस रिपोर्ट में उन तीन तरीकों की पहचान की है, जिसमें पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक सामग्री हानिकारक रसायनों को अपने अंदर संजो सकती है:
  • इसमें सबसे पहले नए प्लास्टिक में मौजूद जहरीले केमिकल्स से सीधे तौर पर होने वाला प्रदूषण शामिल है।
  • इसी तरह प्लास्टिक कंटेनरों में भरे कीटनाशक, सफाई करने वाले सॉल्वैंट्स और अन्य पदार्थ जो रीसाइक्लिंग चेन में प्रवेश कर रहे हैं वो प्लास्टिक को दूषित कर सकते हैं।
  • इसी तरह पुनर्चक्रण प्रक्रिया, जिसमें प्लास्टिक को गर्म किया जाता है वो भी इसमें हानिकारक केमिकल्स को बढ़ा सकते हैं।
  • अक्सर प्लास्टिक उत्पादन, निपटान और उनको भस्म करने की सुविधाएं, दुनिया के कमजोर, पिछड़े समुदायों के आसपास स्थित होती हैं। ऐसे में इनसे निकलने वाले हानिकारक केमिकल्स के संपर्क में आने से उनमें कैंसर, फेफड़ों की बीमारी और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का खतरा बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य को खतरा

  • रिपोर्ट के मुताबिक बढ़ते प्लास्टिक के साथ-साथ, रीसाइक्लिंग सुविधाओं में भीषण आग का खतरा भी बढ़ गया है, खासकर उन जगहों पर जहां इस्तेमाल की गई बैटरी के साथ ई-कचरा के रूप में प्लास्टिक भी होता है।
  • 2022 में अमेरिका और कनाडा में किए एक सर्वेक्षण से पता चला है कि वहां प्लास्टिक रीसाइक्लिंग और अपशिष्ट सुविधाओं में आग लगने के रिकॉर्ड 390 मामले दर्ज किए गए थे। तुर्की की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि उस देश में प्लास्टिक रीसाइक्लिंग सुविधाओं में आग लगने की घटनाएं 2019 में 33 से बढ़कर 2021 में 121 हो गई हैं।
  • इसी तरह अप्रैल 2023 तक पिछले 12 महीनों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, घाना, रूस, दक्षिणी ताइवान, थाईलैंड, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका के फ्लोरिडा, इंडियाना, उत्तरी कैरोलिना में स्थित प्लास्टिक रीसाइक्लिंग सुविधाओं में भीषण आग लगने के मामले सामने आए हैं।

2060 तक बढ़कर तिगुना हो जाएगा प्लास्टिक उत्पादन

  • रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक उत्पादन को नाटकीय रूप से कम किए बिना प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना असंभव होगा। इस बारे में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर केवल नौ फीसदी प्लास्टिक कचरे का ही पुनर्चक्रण किया जाता है । इतना ही नहीं अनुमान है कि आने वाले समय में स्थिति कहीं ज्यादा बदतर हो सकती है क्योंकि 2060 तक प्लास्टिक उत्पादन तिगुना होने का अनुमान है। वहीं दूसरी तरफ रीसाइक्लिंग में मामूली वृद्धि का अनुमान है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, यदि देश और कंपनियां मौजूदा तकनीकों के बेहतर उपयोग के साथ-साथ नीतियों और बाजार में बदलाव करें। तो 2040 इस प्लास्टिक कचरे को 80 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
  • ऐसे में ग्रीनपीस ने इस पेरिस वार्ता में, एक महत्वाकांक्षी, कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक प्लास्टिक संधि की वकालत की है। जो प्लास्टिक पर निर्भरता को कम करने के साथ-साथ बढ़ते कचरे की रोकथाम में मदद कर सकती है।

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