विस्तार से संतुलन बनाने की कोशिश

प्रसंग:

  • भारत ने छह नए देशों के ब्रिक्स में प्रवेश के मुद्दे पर सदस्य देशों के बीच सहमति की बात की। नए देशों को शामिल करने के मामले में राष्ट्रीय हितों का ध्यान रखा गया, जो कि संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र को ब्रिक्स में शामिल करने के फैसले से पता चलता है, क्योंकि ये दोनों ही देश हमारे रणनीतिक सुरक्षा साझेदार हैं।

लाभ:

  • समूह में शामिल किए गए छह नए देश ब्रिक्स को मजबूती और रफ्तार देंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे चार सदस्य देशों, ईरान, सऊदी अरब, अर्जेंटीना और इथियोपिया, के भी भारत से मैत्रीपूर्ण संबंध हैं।
  • ब्रिक्स का विस्तार और इसे आधुनिक रूप देने का फैसला एक संदेश है कि दुनिया की सभी संस्थाओं को चुनौतियों के अनुरूप खुद को लचीला बनाना होगा, और भारत ने ब्रिक्स की सदस्यता के विस्तार का हमेशा ही पूर्ण समर्थन किया है। भारत का मानना है कि नए सदस्य ब्रिक्स के उद्देश्यों की पूर्ति के अलावा इस संगठन को मजबूती देंगे।
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में ब्रिक्स का विस्तार अनेक देशों के भरोसे को मजबूत करेगा। नए सदस्य देशों में से ईरान और सऊदी अरब के चूंकि भारत से नजदीकी रिश्ते हैं, ऐसे में, इस विस्तार से समूह में असंतुलन पैदा होने की आशंका नहीं है।

मुद्दे:

  • विस्तार के बाद ब्रिक्स को वैश्विक शासन को आकार देने और एक ऐसे बहुध्रुवीय विश्व के निर्माण की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिसमें विकासशील और अल्प विकसित देशों की आवाजें वैश्विक एजेंडे के केंद्र में हों।
  • सदस्यों के विविधतापूर्ण हित, उनके साझा हितों में बाधा न बनें। इसलिए द्विपक्षीय विवादों को किनारे रखना जरूरी है।
  • ब्रिक्स को पश्चिम विरोधी या चीन-रूस समर्थक होने से बचना होगा।
  • समूह में छह देशों का प्रवेश वैश्विक आर्थिक व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, इसलिए, इसे अगले स्तर पर ले जाने के प्रयास होने चाहिए।
  • ब्रिक्स अपने समूह की मुद्रा जारी करने पर भी विचार कर सकता है, लेकिन इसके लिए सर्वसम्मति जरूरी है, और, यह कदम पश्चिम और अमेरिका को लक्षित करके न उठाया जा रहा हो।
  • संस्थापक सदस्यों को पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के नए सदस्यों की पहचान और उनके महत्व का सम्मान करना होगा, ताकि ब्रिक्स में विविधता बनी रहे।
  • ब्रिक्स के जरिये भारत को विकासशील देशों की आवाज बनने का मौका मिला है, जो अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में उसकी छवि को ताकतवर बनाएगा। इसके अलावा, भारत की सीमा पार आतंकवाद की समस्या के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन की मांग को इस मंच के जरिये उठाया जा सकता है। चीन को भी अपने रवैये में बदलाव लाने के लिए मजबूर किया जा सकता है। गौरतलब है कि चीन और रूस का गठजोड़ काफी खतरनाक हो सकता है। ईरान और सऊदी अरब के समूह में प्रवेश का श्रेय चीन और रूस को दिया जा रहा है, जिसके पीछे एक अमेरिका और पश्चिम विरोधी गुट बनाने की मंशा छिपी है। ईरान और सऊदी अरब के बीच मध्यस्थता का काम चीन ने किया था, जो कि अमेरिका के लिए अच्छी खबर नहीं थी। यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस को नुकसान हुआ है और चीन पर उसकी निर्भरता बढ़ी है।
  • रूस क्वाड, जी-7 इत्यादि संगठनों के जरिये भारत और अमेरिका को गलत संकेत भेज रहा है। सऊदी अरब कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है, जबकि चीन कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक देश रहा है। इसका मतलब यह भी है कि रूस और सऊदी अरब एक नए आर्थिक् गुट में एक-दूसरे से जुड़ेंगे ओर दोनों ही तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक के सदस्य भी हैं। अब अगर ये दोनों देश जुड़ते हैं, तो इससे सऊदी अरब और अमेरिका में मतभेद पैदा हो सकते हैं। फिर, चीन भी उन विभिन्न समूहों की आलोचना करता आया है, जिन्हें अमेरिका ने इसके बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए बनाया है। ब्रिक्स के कई सदस्यों के साथ चीन के व्यापारिक संबंध हैं। ऐसे में, घाटे को संतुलित रखने का मुद्दा उनके लिए महत्वपूर्ण होगा, जो चीन की स्थिति को मजबूत करेगा।

निष्कर्ष:

  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियों गुटेरेस ने ब्रिक्स के विस्तार सत्र के दौरान जो टिप्पणी की है, वह काफी प्रासंगिक है, ‘वर्तमान की वैश्विक शासन व्यवस्थाएं, कल की दुनिया का आईना हैं। इसलिए, बहुध्रुवीय संस्थानों को सार्वभौमिक बनाने के लिए उनमें सुधार जरूरी हैं। ’

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