#Nai Dunia
स्वाधीनता दिवस एक बार फिर आत्मावलोकन का अवसर लेकर उपस्थित हुआ है।
Some achievement & Some Downfall:
- देश ने विगत सात दशकों में सामाजिक-आर्थिक उन्नयन के नए कीर्तिमान गढ़े हैं। शिक्षा, चिकित्सा, वाणिज्य, कृषि, रक्षा, परिवहन तकनीकि आदि सभी क्षेत्रों में विपुल विकास हुआ है,
- परिमाणात्मक विकास के इस पश्चिमी मॉडल ने हमारी गुणात्मक भारतीयता को क्षत-विक्षत भी किया है। हमारी संतोषवृत्ति, न्याय के प्रति हमारा प्रबल आग्रह, निर्बलों और दीन-दुखियों की सहायता के लिए समर्पित हमारा संकल्प, सामाजिक-राजनीतिक संदर्भों में वाक् संयम, धार्मिक जीवन में आडंबररहित उदारता और स्वदेश तथा स्वाभिमान के लिए संघर्ष की चेतना हमारे स्वातंत्र्योत्तर परिवेश में उत्तरोत्तर विरल हुई है। महात्मा गांधी का ‘हिन्द स्वराज’ यांत्रिक प्रगति के अविचारित प्रयोग की भेंट चढ़ चुका है।
- Digital India & Opposite to it cyber crime: आज एक ओर नेतृत्व को ‘डिजिटल इंडिया’ का दिवास्वप्न मुग्ध कर रहा है तो दूसरी ओर बढ़ते साइबर क्राइम ने जनता के जीवन और धन दोनों की सुरक्षा पर गहरे प्रश्नचिन्ह लगाए हैं। सत्ता प्रगति और विकास का नारा उछालती हुई नित नई समस्याओं का मकड़जाल बुन रही है और जनता प्रचारतंत्र की विविधवर्णी प्रायोजित विवेचनाओं में भ्रमित होकर दिशा ज्ञान खो रही है।
- Rising Suicide :अवयस्क विद्यार्थी से लेकर वयस्क किसान तक और बेरोजगार युवा से लेकर जिलाधीश जैसे प्रतिष्ठित प्रशासनिक पद पर आसीन व्यक्ति तक आत्महत्या कर रहा है! आखिर क्यों?
- कड़े वैधानिक प्रावधानों के बाद भी बाल-मजदूरी क्यों जारी है? भ्रष्टाचार, बलात्कार और सामूहिक हिंसा का ज्वार चरम पर क्यों है? आजादी की छांव तले पनपते ये सब ज्वलंत प्रश्न आज गंभीर और ईमानदार विमर्श की अपेक्षा कर रहे हैं।
हम सकारात्मक दृष्टि मानकर भौतिक उपलब्धियों में ही स्वतंत्रता की सार्थकता समझ बैठे हैं और अपने पारंपरिक-नैतिक जीवन मूल्यों की उपेक्षा करते हुए आज ऐसे अदृश्य बियावान में आकर फंस गए हैं जहां साहस और संघर्ष की चेतना लुप्त है और मृत्यु का गहन अंधकार आकर्षक लग रहा है। इसी कारण आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। एक स्वाधीन देश की सार्वभौमिक सत्ता व्यवस्था के लिए यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।
Have we accepted our failures?
सार्वजनिक संबोधनों के अवसर पर अपनी उपलब्धियों को गिनाना और अपनी गलतियों को छिपाना हमारे नेतृत्व की पुरानी आदत रही है। यही कारण है कि हम स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे महत्त्वपूर्ण अवसरों पर अपनी दशा और दिशा का निष्पक्ष विवेचन करने के स्थान पर योजनाओं के नाम-परिगणन और आंकड़ों के प्रदर्शन में उलझकर रह जाते हैं। गिलास का आधा भरा होना हमें मोह लेता है और हम पूरा भरने का प्रयत्न नहीं करते इसीलिए हमारी योजनाएं ‘स्मार्ट सिटी’ के लिए अर्पित होती हैं, झुग्गी झोपड़ियों के लिए नहीं। हम अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं पर करोड़ों व्यय करते हैं, किन्तु अभी भी शुद्ध पेयजल जैसी अनिवार्य सुविधाओं से वंचित सुदूरस्थ गांवों तक पानी पहुंचाने का सार्थक और ईमानदार प्रयत्न नहीं करते। नित नई दुर्घटनाएं होती हैं; जांच समितियां बनती हैं; आयोग बैठते हैं और समस्याएं जस की तस खड़ी रह जाती हैं क्योंकि न्याय की लंबी प्रक्रिया में दोषी देर तक दंडित नहीं हो पाते। इन बिंदुओं पर अब गहन और निष्पक्ष चिंतन अपेक्षित है।
Concluding mark
वास्तव में आजादी अभी भी अधूरी है। उसे पूरा करने के लिए सजग और ईमानदार प्रयत्नों की; दृढ़ संकल्पों की और दूरदृष्टिपूर्ण वैश्विक समझ की आवश्यकता है। आजादी के अमृत से हमारा आधा गिलास भरा हुआ है और स्वस्थ-समरस समाज निर्माण के कठिन संकल्पपूर्ण प्रयत्नों से हमें उसे पूरा भरना है। अंत्योदय और सर्वोदय की संकल्पना साकार करनी है इसलिए स्वतंत्रता दिवस (independence) के इस अवसर पर निष्पक्ष आत्मावलोकन अपेक्षित है।