आर्थिक समीक्षा 2016-17 खंड-2 : अर्थव्यवस्था की स्थिति – विश्लेषणात्मक समीक्षा और नीति अनुमान

Economic Survey  2016-17 खंड-2 में भारतीय अर्थव्यवस्था  (Indian Economy) में ढांचागत सुधारों के प्रति नई आशा जताई गई है। नई आशा के कारकों में जीएसटी लांच किया जाना, विमुद्रीकरण के आर्थिक प्रभाव, एयर इंडिया के निजीकरण का सैद्धांतिक निर्णय, ऊर्जा सब्सिडी को और तर्कसंगत बनाना तथा दोहरे तुलन पत्र की चुनौती के समाधान से संबंधित कदम शामिल है।

  • Economic Survey में विश्वास व्यक्त किया गया है कि बृहद आर्थिक स्थिति मजबूत बनी हुई है क्योंकि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं और इसलिए भी कि तेल बाजार के बुनियादी बदलाव से सतत मूल्य वृद्धि के जोखिम में कमी आई है, जो मुद्रास्फीति और भुगतान शेष को अस्थिर कर रही थी।
  • लेकिन समीक्षा में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई है कि मूल्यों में कमी लाने की प्रवृत्तियां अर्थव्यवस्था पर छाई हुई है जो अपने विकास की पूरी गति प्राप्त नहीं की है और अपनी पूरी क्षमता का दोहन नहीं कर पाई है।
  • इस कदमों में कृषि आगम प्रभार, क्योंकि अनाज भिन्न खाद्यों कीमतों में गिरावट आई है, कृषि ऋण माफी और इससे बरती जाने वाली राजकोषिय कठोरता तथा बिजली और दूरसंचार क्षेत्रों में मुनाफे में कमी है जिससे दोहरे तुलन पत्र की समस्या और बिगड़ी है।
  • सर्वे में इस बात की जांच की गई है कि क्या कम मुद्रास्फीति की दिशा में गैर मुद्रास्फीति प्रक्रिया में ढांचागत बदलाव से गुजर रहा है।
  • सर्वे में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों की तुलना में आज तेल बाजार इस दृष्टि से बिलकुल अलग है कि भाव नीचे की ओर जा रहे हैं या कम से कम भाव के ऊपर जाने के जोखिम सीमा में है।
  • कृषि ऋण माफी से भी सकल मांग में जीडीपी के 0.7 प्रतिशत की कमी की संभावना है और यह अर्थव्यवस्था को गैर-स्फीतिकारी झटका दे सकती है।
  • नए कर दाताओँ की संख्या में वृद्धि तथा विमुद्रीकरण के बाद 5.4 लाख नए करदाता उभर कर आए हैं, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर विमुद्रीकरण के प्रभाव से सामाजिक बीमा की मांग बढ़ी है विशेषकर कम विकसित राज्यों में।
  • मनरेगा और सरकार द्वारा इसको लागू करने से कार्यक्रम की सामाजिक सुरक्षा की भूमिका जरूरत के समयमें पूरी हुई है।
  • समीक्षा में यह भी कहा गया है कि वृद्धि की वर्तमान दर को बनाए रखने के लिए विकास प्रेरक सामान्य कदम उठाने होंगे जिनमें निवेश और निर्यात तथा ऋण वृद्धि सुगम बनाने केलिए तुलन पत्रों की साफ-सफाई आवश्यक है।
  • विद्युत क्षेत्र की दबावग्रस्त कंपनियों (1 से कम ब्याज कवरेज (आईसी) के साथ कंपनियों के ऋण हिस्से के रूप में परिभाषित) का अनुपात इस वर्ष तेजी से बढ़कर 75 प्रतिशत हो गया है और उनके पास 3.6 लाख करोड़ का ऋण है।
  • दूरसंचार क्षेत्र को बाजार में एक नई कंपनी के प्रवेश करने से झटका लगा है क्योंकि इस कंपनी के आने से डाटा कीमतों में कमी आई है और कम से कम लघु अवधि के लिए उपभोक्ताओं को लाभ मिला है।
  • 2017-18 के वृद्धि अनुमान के बारे में समीक्षा (खंड-1) में वित्त वर्ष 2018 के लिए सकल घरेलू उत्पाद में 6.75 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया गया था। 2017-18 के मूल्यों तथा मुद्रास्फीति के बारे में आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विभिन्न कारक निकट भविष्य में मुद्रास्फीति की तस्वीर निर्धारित करेंगे। इन कारकों में निम्ननिखित हैं :
     
  • पूंजी प्रवाह तथा विनियम दर के लिए पूर्वानुमान अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं विशेषकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था के अनुमान और नीति से प्रभावित होगी।
  • हाल की सामान्य विनियम दर में वृद्धि
  • मानसून
  • जीएसटी का लागू होना
  • सातवें वेतन आयोग की सिफारिश
  • संभावित कृषि ऋण माफी
  • आउटपुट अंतर

समीक्षा में कहा गया है कि वर्तमान मुद्रास्फीति दर का 4 प्रतिशत से कम होना यह बताता है कि मार्च 2018 तक मुद्रास्फीति दर आरबीआई के 4 प्रतिशत के लक्ष्य से कम रहने की संभावना है। आर्थिक विकास 2016-17 की समीक्षा के बारे में निम्ननिखित बातें कही गई हैं :

पिछले वर्ष के 8 प्रतिशत की तुलना में 2016-17 में वास्तविक अर्थव्यवस्था 7.1 प्रतिशत की दर से बढ़ी। यह फरवरी में पेश आर्थिक समीक्षा 1 ग्रेड -1 में व्यक्त किए गए अनुमान से ज्यादा है।

  • यह वृद्धि कहती है कि विमुद्रीकरण के कारण तरलता के संकट को झेलते में अर्थव्यवस्था सुदृढ़ बनी रही। विमुद्रीकरण से 2016-17 की दूसरी छमाही में नकदी प्रचलन में 22.6 प्रतिशत की कमी आ गई थी। यह सुदृढ़ता न्यूनतम विकास में दिखी क्योंकि न्यूनतम जीवीए तथा जीडीपी में 2015-16 की तुलना में 2016-17 में 1 आधार अंक से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई।
  • 2014-15 में वार्षिक मुद्रास्फीति औसतन 5.9 प्रतिशत थी और तब से वित्त वर्ष 2017 में गिरकर 4.5 प्रतिशत रह गई। 2016-17 में और नाटकीय परिणाम सामने आए। मुद्रास्फीति दर जुलाई 2016 के 6.1 प्रतिशत से गिरकर जून 2017 में 1.5 प्रतिशत पर आ गई।
  •  वित्त वर्ष 2015 के अंत में और पूरे वित्त वर्ष 2016 में मुद्रास्फीति में काफी गिरावट के कारण रहा। वैश्विक सामग्री विशेष कर कच्चे तेल की कीमतों में कमी। वैश्विक सामग्रियों की कीमतों में सुधार आने तथा ‘आधार प्रभाव’ (पिछले वर्ष में कम मुद्रास्फीति) से यह वित्त वर्ष 2017 में थोक मुद्रास्फीति में ऊंचाई आई।
  • तिजारती कारोबार में सुधारी स्थिति और मजबूत पूंजी प्रवाह के कारण बाह्य स्थिति सुदृढ़ दिख रही है। मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई है और विनियमन दर मजबूत हुई है।
  • 2016-17 में चालू खाता घाटा जीडीपी का 0.7 प्रतिशत कम रहा। यह घाटा पिछले वर्ष जीडीपी का 1.1 प्रतिशत था।
  • दो वर्षों के अंतराल के बाद निर्यात में सकारात्मक वृद्धि हुई और आयात में थोड़ी कमी आई। इससे भारत का व्यापार घाटा वित्त वर्ष 2017 में पिछले वर्ष की तुलना में 6.2 प्रतिशत (130.1 मिलियन डॉलर) घटकर जीडीपी का 5.0 प्रतिशत (112.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हो गया

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