एक तरफ देश का किसान कर्ज से बेहाल है, तो दूसरी ओर उद्योगपतियों की कर्ज से ही पौ बारह हो रही है। विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे उद्योगपति बैंक से हजारों करोड़ों का कर्ज लेकर फरार हो जाते हैं, वहीं छोटा कर्ज लेकर किसान आत्महत्या तक करने को मजबूर हो जाते हैं। देश के किसानों का नॉन परफॉर्मेंस एसेट्स (NPA) 66,176 करोड़ है, तो उद्योगों का एनपीए 5,67,148 करोड़ है। देश के संपूर्ण एनपीए पर नजर दौड़ाएं, तो एक बात साफ होती है कि यह राशि 7,76,067 करोड़ रुपये है। इसमें से 6,89,806 करोड़ रुपये सार्वजनिक बैंकों के हैं, तो 86,281 करोड़ रुपये निजी बैंकों के हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिए गए ब्यौरे के मुताबिक, सेवा क्षेत्र का एनपीए 1,00128 करोड़ रुपये है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का 83,856 और निजी बैंकों का 16,272 करोड़ रुपये है। इसके अलावा अन्य क्षेत्रों का एनपीए बहुत कम है। बैंक के जानकारों की मानें, तो एनपीए वह राशि है जिसकी बैंकों के लिए आसान नहीं है। एक हिसाब से यह डूबते खाते की रकम की श्रेणी में आती है, इस राशि को बैंक राइट ऑफ घोषित कर अपनी बैलेंस शीट को साफ -सुथरा कर सकता है।
बीते पांच सालों में बैंकों ने 3,67,765 करोड़ की रकम आपसी समझौते के तहत राइट ऑफ की है। बैंक के जानकार बताते हैं कि बैंकों की खस्ता हालत का एक कारण एनपीए है, तो दूसरा लंबित कर्ज है। बैंक के द्वारा जो रकम राइट ऑफ की जाती है, वह आम उपभोक्ता के ही खातों से वसूली जाती है। एनपीए सीधे तौर पर वह रकम है, जो बैंक वसूल करने में असफल नजर आता है।
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